________________ श्री कल्पमु. कावल्या // 158 // रम्भागृहे पूर्व दिशो मनोज्ञे, नीत्वा :प्रभुन्ताजननीञ्जनेशम् // पट्पञ्चाशत् दिक स्नानप्रलेपाशुकभूषणानि, सन्धारयामासुरथक्रमेण // 3 // ANकुमारीकृतदिश्युत्तरस्यामरणीन्धनाभ्या-मुत्पाद्य वहिम्वरचन्दनै वै // | महोत्सवः होमम्विधायैव बबन्धु रेता, रक्षाश्चिताम्पोट्टलिकान्द्वयोश्च // 4 // रत्नस्य ता द्वौ प्रथमञ्च गोलका-वास्फाल्य चोचुभवशैलकायुः // नीत्वाऽनु तौ जन्मगृहे पवित्रे, स्वाशासु तस्थु जंगु रित्थमेताः॥५॥ सामानिकास्तुर्यसहस्रसक्या-माहात्तराश्चापि सुरास्तथैव // अङ्गाभिरक्षा रसचन्द्रमानाः, सेनास्तकेशा अपि सप्त सप्त // 6 // नत्वा प्रभु तदम्बां चेशाने सूतिगृहं व्यधः, सवनाशोधयन् क्ष्मामायोजनमितो गृहात् // 7 // अर्थात्-सवर्तनामवायुना सूतिकागृहात् आरभ्य एकयोजनपरिमितां भूमि शोधयन्ति स्मेति भावः // मेघकरा 1 मेघवती 2 सुमेघा 3 मेघमालिनी 4 तोयधारा 5 विचित्रा च 6 वारिषेणा 9 बलाहका 8 // 16 एतनाम्न्योऽष्टदिक्कुमार्यः-ऊर्ध्वलोकादागत्य प्रभु तथा प्रभुजननीश्च नमस्कृत्य हर्षात् सुगन्ध जलम् पुष्पवृष्टिश्च चक्रुः-१६-तथा / 16 षोडशसहसाणीति // 148 //