________________ कल्पमुक्त.वल्यां प्रभो जन्माधिकारः // 144 // व्याख्या--तदानीं प्रभुजन्मसमये ग्रहेषु उच्चस्थानस्थितेषु-सत्सु ग्रहाणामुञ्चत्वञ्चेत्थम् अजवृषभगाङ्गना कुलीराःक्ष्मखवणिजोऽच दिवाकरादितुङ्गाः दश शिखि मनुयुगतिथि पन्द्रियांशै२७ विंशति°भिश्च भवन्ति चोच्चनीचाः-इतिवृहज्जातकप्रमाणेन शेयम् अयम्भावः-मेष वृष मकर कन्या कर्क मीन तुलाराशिषु स्थिताः सूर्य चन्द्र मङ्गल बुध गुरु शनयो ग्रहाः-क्रमशो दशादि संख्यया परमोच्चा भवन्तिः // एषां फलन्तु क्रमशः-इत्थम् // उच्चे सूर्ये सुखी चन्द्रे भोगी चोच्चे कुजे धनी, उच्चे बुधे महानेता देवेज्ये मण्डलाधिपः // 1 // भार्गवे नृपतिः चक्री शनावुच्चे च बुध्यताम्, उच्चेषु सप्तऋक्षेषु जायते तीर्थनायकः // 2 // // उक्तञ्च सिद्धान्तेऽपि // तिहिं उच्चेहिं नरिंदो, पञ्चहिं तह होइ अध्धचक्की, अछहिं होइ चक्कवट्टी, सत्तहिं तित्थङ्करो होइ // 1 // // अथ ग्रहाणामुच्चयन्त्रम् // | मेख | वृष | मकर | कन्या | कर्क | मीन | तुला | राशिः | सूर्य | चन्द्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | ग्रहाः | 3 | 28 | 15 / 5 | 27 / 20 / अंशाः प्रथमे प्रधाने चन्द्रयोगे सति सौम्यासु-(रजोवृष्टिरहितत्वात् अतिसुन्दरासु) दिशासु विद्यमानासु सती-षु // 144 //