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________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां त्रिशला हर्ष: // 137 // मालिनीवृत्तम् ललितनयनयुग्मा स्मेरगण्डस्थलीया, विकसितमुखपद्मा झातगर्भोदयेद्धा' // ___ समुदितकचराजि स्पैशलामिष्टवाणी, निजहृदयसखीनामग्रतो व्याजहार // 1 // स्फुरति विधिनियोगा, साम्प्रतं मे नु सख्यः?, त्रिभुवनशिवकारी गर्भ एषोऽतिशस्तः / / अनुचितमतिमोहाच्चिन्तितं धिङ् मया भोः, कमिह नहि हि मोहः पीडयत्यात्म वैरी // 2 // त्रिभुवनजनमान्या धन्यभाग्याऽहमत्र, विमलसुकृतगेहा शुध्धवंशाप्तदेहा // अपि च मम सुसख्यो जीवनश्चापि शस्य, मत इह च कृतार्थीभूतमेतच्च जन्म // 3 // जिनवरकजप दाः साम्पतम्मे प्रसेदु, रपि प्रमुदितचित्ता गोत्रदेव्यो बभूवुः // जिनवृषसुरशाख्या राधितो जन्मतो हि, फलित इह महीयान् स्वगमोक्षकहेतुः // 4 // इति दतमनस्कां देवीमालोक्य सर्वाः, कलकमलमुखेभ्य थाशिषो वृध्धनार्यः / जय जय वरभाग्ये नन्द नंदेति दीर्घ, द्वयकुलविधु कीर्ते! जीव जीवेह दधुः // 5 // तदनु च कुलनार्यो मङ्गलानि प्रतेनु, रतिवरधवलानि स्मेरवक्त्राः समन्तात् // 1 दीप्ता 2 शाखीति पदच्छेदः 3 चन्द्रः // 137 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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