________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां गर्भकीय मनोवेदना // 132 // परभवे महिषीतनयाः किमु, बत हता मयका च वियोजिताः॥ - लघुलघूत्तमगोवरवत्सका, स्तकप्रसूव्रजतश्च वियोजिताः // 13 // बहुललोभतया तक देहज, मधुर दुग्धविपान विघातकम् // कृतवती परितः किमु कारितः, सशिशुकोन्दर गेहमथारुणत् // 14 // अपि च कीटकराशि पुराण्यहो, सुकृत बुध्धितयोष्णजलेन किम् // परिगतानिकतानि तथाऽण्डकाः, परभृतां विदयश्च विभेदिताः // 15 // भुवि च वाऽथ मया खगनीडकं, सशिशुयुक्तमहो बहु पातितम् // पिकशुकादि सुताः किल वा मया, तक प्रसूवर कुक्षि वियोजिताः॥१६॥ शिशुवधोऽथ मया कृत एव किम्परसुता दिषु वा रिपुता कृता / अपि च कृत्यमचिन्त्य महो कृतं, स्ववश हेतुतया व्यभिचारिकम् // 17 // अपि च-गर्भविरोध विभेदने, परभवे च मया वत हा कृते // अपि च मन्त्रमुखौषधयोगका, निजहिताय कृता खलया मया // 18 // विमलशील विखण्डनमात्मना, परभवे च मया विहितं नु किम् // नहि च दुःखमिदं बहुलं क्षिती, भवति तेन विना मुनि वागियम् // 19 // यतः-कुरण्डत्वरण्डत्वदुर्भगत्वानि वन्ध्यत्वनिन्दु (मृतापत्यप्रसूः ) 1 काकानां 2 सपत्नी सुतादिषु वा // 132 //