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________________ श्री कल्पमुकावल्यां गर्भकीय 1| मनोवेदन // 131 // किमपराद्ध मये मयका विधे ?, परभवेऽत्र तथा शठ ! रे वद // उचित मेत दलं न च वा ततो, नहि च धात रहो तन' वीक्षसे // 7 // अथ च किम्बिदधे कुत एभि च, धुरि च कस्य वदामि हितैषिणः॥ पृथुल शोक हुताशन पातिता, विदयदैव ! ततः परिभक्षिता // 8 // किममुना बहुराज्य धनेन च, विषयजन्य मुखः किमु वा क्षणैः // किमु दुकूल सुखोत्तम शय्यया, किमु च हर्म्यललाम सुखैः परै // 9 // गजवृषादि विलोकन सूचितं', त्रितयलोक जनालिक' वन्दितम् // निखिल बान्धव मक्षि सुखप्रदं, तनयरत्नमृते' जनवल्लभम् // 10 // युग्मम् धिगिमकं क्षय शील भवार्णव, स्विषय सौख्यकणानपि दुःखदान् / / मधुक लिप्त महासि सुखास्वदि, सदृश भाज इहाति चलान हो // 11 // परभवे मयका किमु दुष्कृतं, कृतममुष्य फलं खलु चेदृशम् // समुदितश्च यथा मुनिपुङ्गवैः, सुकृत' शास्त्र चयेऽमलबुद्धिभिः // 12 // उक्त श्व-पशुपक्षि मानुषाणां, बालान् योऽपि च वियोजयति, पापः सोऽनपत्यो जायते, ह्यथ जायते ततो विपद्येत // 2 // 1 ईषदपि 2 स्वप्नसूचितम् 3 मस्तकम् 4 (ऋते विना) 5 धर्मशास्त्रे // 11 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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