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________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां स्वप्नशास्त्र वर्णनं यः सूर्याचन्द्रमसोविम्ब असते समग्रमपि पुरुषः॥ कलयति दीनोऽपि महीं ससुवर्णा सार्णवां नियतम् // 14 // हरणं प्रहरणभूषणमणिमौक्तिककनकरूप्यकुप्यानाम् // धनमान म्लानिकरं दारुणमरणाबह बहुशः॥ 15 // आरूढः शुभ्रमिभं नदीतटे शालिभोजनं कुरुते // भुक्त भूमिमखिलां स जातिहीनोऽपि धर्मधनः // 16 // निजभाया हरणे वसुनासः परिभवे च संक्लेशः॥ गोत्र स्त्रीणां तु नृणां जायेते बन्धुवधवन्धौ // 17 // शुभ्रेण दक्षिणस्यां यः फणिना दृश्यते निज भुजायाम् // आसादयति सहस्रं कनकस्य स पञ्चरात्रेण // 18 // जायेत यस्य हरणं नजशयनोपानहां पुनः स्वप्ने // तस्य म्रियते दयिता निविडा स्वशरीर पीडा च // 19 // यो मानुषस्य मस्तकचरणभुजानां च भक्षणं कुरुते // राज्यं कनकसहस्रं तदर्धमाप्नोत्यसौ क्रमशः // 20 // द्वारपरिघस्य शयनपेढोलनपादुकानिकेतानाम् / / भञ्जनमपि यः पश्यति तस्यापि कलत्र नाशः स्यात // 21 // कमलाकर रत्नाकर जलसम्पूर्णापगाः सुहृन्मरणम् // य पश्यति लभतेऽसावनिमित्तं वित्तमतिविपुलम् // 22 // अतितप्तं पानीयं सगोमयं गडुलमौषधेन युतम् // य पिबति सोऽपि नियतं म्रियतेऽतीसाररोगेण // 23 // देवस्य प्रतिमाया यात्रास्नपनोपहारपूजादीन् / यो विदधाति स्वप्ने तस्य भवेत् सर्वतो वृद्धिः॥२५॥ स्वप्ने हृदयसरस्यां यस्य प्रादुर्भवन्ति पद्मानि // कुष्ठविनष्ठ शरीरो यमवसतिं याति स त्वरितम् // 25 // आज्यं प्राज्यं स्वप्ने यो विन्दति वीक्ष्यते यश स्तस्य // तस्याभ्यवहरणं वा क्षीरान्नेनैव सह शस्तम् // 26 // हसने शोचनमचिरात-प्रवर्तते नर्तनेऽपि वधबन्धौ॥ पठने कलहश्च नृणामेतत प्राज्ञेन विज्ञेयम् // 27 // कृष्णं कृत्स्नमशस्तं भुक्त्वा गोवाजिराजगजदेवान् // सकलं शुक्लश्च शुभं त्यक्त्वा कर्पासलवणादीन् // 28 // // 115 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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