________________ स्वप्नदर्शन श्री कल्पमुतावल्यां पृच्छादि // 108 // दक्षिणाने नराणां हि स्फुरणम्प्रोक्तमुत्तमम् // तथा स्त्रीणाश्च वामाङ्गे विधेयमङ्गपूर्विका // 1 // उत्तमोऽयं मध्यमश्च स्वप्नोऽयमधम स्तथा // विचार स्त्वीदृशो यत्र स्वप्न विधेय मुच्यते // 2 // गरुड घूककाकादि स्वराणाश्च फलं यया // शुभाशुभं हि बुध्येत स्वरविषेय मुत्तमा // 3 // भूमि कम्पादि विज्ञानं पूर्वमेव यया ध्रुवम् // ज्ञायते भौमविद्याऽसौ कथ्यते पूर्वसूरिभिः॥४॥ शरीरे विद्यमाना ये मषीक तिलकादयः // तेषां ज्ञानं यया सम्यग् विधेयं व्यञ्जनामिका // 5 // पाणिपादादि विज्ञानं सामुद्रोक्तं ययाऽखिलम् // ज्ञायते सा च विज्ञेया विद्या लक्षण संज्ञकाः॥६॥ उत्पातो धूमकेत्वादि बबनर्थकरो यया // ज्ञायते सा च विज्ञेया विद्योत्पातादि बोधिका // 7 // उदयास्तादि विज्ञानं ग्रहाणाञ्च यया स्फुटम् // ज्ञायते साऽन्तरिक्षाख्या विद्या परम सुन्दरा // 8 // पुनः कीदृशान् स्वप्नपाठकान् विविधशास्त्र कुशलान् इत्थम्भूतान् स्वप्नलक्षण पाठकान् आकारयत // मूलपाठः-त एणं ते कोडुंबिय पुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हतु? जाव हियया करयल जाव पडिसुणन्ति / / 65 // // व्याख्या // ततस्ते कौंटुम्बिकाः पुरुषाः सिद्धार्थेन राज्ञा-एवमुक्ताः सन्तः हष्टतुष्टाः यावत्: हर्षपूर्णहृदयाः करतलाभ्यम्-शिरसि-अजञ्जि कृत्वा यथा देवो विशपयति तथा कुर्मः इति प्रतिशृण्वंति-अथां विनयेन सिद्धार्थ भूपाशां स्वीकुर्वन्ति // 5 // // 108 //