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________________ श्री कल्पमुः क्तावल्यां चतुर्दशस्वनाधिकारः // 92 // मित्याह-तरुण सूर्यमण्डल समप्रभं पुनर्दीप्यमान शोभम्-पुनरुत्तमकाञ्चनमहामणिसमूह प्रवराष्टाधिक सहस्रस्तम्भ दीप्यन्नभः प्रदीपम्-पुनः कनकपत्रलम्बमानमुक्तासमुज्ज्वलमू पुनवलदिव्यदामं प्रकाशमानलम्बमानदेवसम्बन्धिमाल्य मिति–पुनः इहामृग' ऋषभ तुरगनरमकरविहगव्यालक किन्नररुरु' शरभ चमरीससक्त कुञ्जर वनलता पद्मलता भक्ति-चित्रम् एतजीवानामशोकपद्मलतानाञ्चरचनामिराश्चर्यकारकमिति पुनर्गन्धर्वोपवाद्यमान सम्पूर्ण घोषम् गीतवाद्य घोषयुक्तमिति पुनर्नित्यं सकलमपि जीवलोकं पूरयदिव केन पूरयदेवदुन्दुभिमहारवेण-कथम्भूतेन सजलधनविपुल जलधरगर्जितसदानुनादिना-सजलमेघगर्जारवसदृशेनेति पुनः कालागुरुप्रवरकुन्दुरुष्कतुरुष्कदह्यमानधूपवासाङ्गोत्तममघमघायमानोध्धुतगन्धाभिरामम्-एतद्रूपसुगन्धिभिरतिसुन्दरमिति पुनर्नित्यालोकं सदा प्रकाशं पुनः श्वेतं पुनः श्वेत प्रभम् पुनः सुरावराभिराम पुनः सातोपभोगं सातवेदनीयकपिभोगयुक्तमिति ईदृश विमानवरपुण्डरीकं त्रिशलादेवी पश्यतीति योजना अत्र पुण्डरीकमुपमानं सर्वविमान श्रेष्ठमिति // 12 // 44 // मूलपाठः-तओ पुणो पुलगवेरिंदनीलसासगकक्कयणलोहियक्खमरगयमसारगल्लपवालफलिहसोगंधियहंसगम्भ अंजणचंदप्पहवररयणेहिं महियलपइट्ठियं गगनमण्डलं तं पभासयंतं तुंग मेरुगिरिसन्निकासं पिच्छइ सा रयणनिकररासि // 13 // 45 // // व्याख्या // ततो विमान दर्शनानन्तरं सा त्रिशलादेवी त्रयोदशे स्वप्ने रत्ननिकरराशिं पश्यति किम्विशिष्ट मित्याह-पुलक 1 वज्र 2 इन्द्रनील 3 सस्यक 4 कर्केतन 5 लोहिताक्ष 6 मरकत 7 मसार गल्ल 8 प्रवाल ९स्फटिक 10 सोगन्धिक 11 हंसंगर्भ 12 अञ्जन 13 चन्द्रप्रभवररत्नम्-अर्थादेतच्चतुर्दशनामकविविधवर्णविशिष्टमहारत्नै 1 वृकाः 2 वृषभाः 3 सर्पाः 4 मृगाः 5 अष्टापदाः 6 वन्यजीवाः 7 अशोकादि लताः 8 रचना ATION // 92 // D
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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