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________________ चतुर्दशस्व. नाधिकारः श्री कल्पमुळा ladl अत्यन्त सुगन्धाकर्षित भ्रमरगणासेवितमिति-एवम्भूतम् नमस्तलात्-अवतरद्दाम प्रेक्षते त्रिशला पञ्चम स्वप्ने इति // 37 // क्तावल्यां मूलपाठः-ससिं च गोखीर फेणदगरय रययकलसपण्डुरं सुभं हिअयनयणकंतं पडिपुन्नं तिमिरनिकरधनगुहिर वितिमिरकरम् पमाणपकखंतरायलेहं कुमुअवणविबोहगं निसासोहगं सुपरिमठदप्पणतलोवमं हंसपडुवन्नं जोइसमुहमंडगं तमरिपुं मयण सरापूरग समुद्ददगं पूरगं दुम्मणं जणं दइ अवज्जिअं पाएहिं सोसयंतं पुणो सोमचारुरूवं पिच्छइ सा गगणमंडलविलाससोमचंकम्ममाणतिलयं रोहिणी मणहि अयवल्लहं देवी पुन्नचंदं समुल्लसतं // 38 // // व्याख्या // ततः पुनः सा त्रिशला देवी पष्टे स्वप्ने शशिनं पश्यतिं कीदृशमित्याह गोक्षीरफेनजलकण रजतकलशपांडुरम् पुनः शुभं पुनर्ह दयनयनकान्तं लोकानामिति ज्ञेयम् // पुनःप्रतिपूर्ण पूर्णचन्द्रमिति पुनस्तिमिरनिकर घनगरवितिमिरकरम् वनकन्दराष्वप्यन्धकारनाशकरमिति // अथ तिमिरमुद्दिश्य कश्चिदुपेक्षते // अस्तगतो दिनमणियदि रेऽन्धकार // किं धावसीह विरमाति सहासहेतोः॥ त्वहर्ष खण्डन पटुङ्गगने विशाले // नोत्प्रेक्षते निखिलविश्वविकाशिचन्द्रम् // 1 // पुनः प्रमाणपक्षान्तरालराजल्लेखम्-अर्थाद्वर्षमासादिहेतुभूतशुक्लकृष्णपक्षराजत्किरणम् / पुनः कुमुदवनविबोधकम पुनर्निशाशोभकम् राज्यलङ्कारभूतम् पुनः 'सुपरिमृष्टदर्पणतलोपमम् पुनहसपटुवर्णम् हंसवदुज्जवलमिति पुन ज्योतिर्मुखमण्डनम् तारा गणादि प्रधानमिति पुनस्तमोरिपुम् पुनर्मदनसरापूरमिव तूणीरमिव // यथा // धनुर्धारी यथा प्राप्य तूणीरं हन्ति रौहिषान् विध्यत्येवं निशानाथ मदनोऽपि शरै जनान् // 1 // 1 निर्मलम् 2 मृगान् 3 चन्द्रम्प्राप्येति
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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