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________________ श्री कल्पमुः कावल्यां 0018 चतुर्दशस्वनाधिकारः // 80 // कमलपत्र प्रकारातिरेकरुपप्रभम् पुनः प्रभामसमूहोपहारैः सर्वतः दशाऽपि दिशो निश्चयेन दीपयन्तम्-पुनरति श्रीभरप्रेरणाविसर्पकांतशोभमान मनोहर ककुदम् ( स्कन्धमिति ) पुनः तनुशुद्ध सुकुमाललोमस्निग्धछविम्-अर्थात् सूक्ष्म निर्मलकोमलमसृणरोमकान्तिम् पुनः स्थिर सुबद्धमांसलोपचितलष्टसुविभक्तसुन्दराङ्गम् // वृषभं सा त्रिशला प्रेक्षते-पुनः कीदृशम् धनवर्तुललष्टोत्कृष्टम्रक्षिताग्रतीक्ष्णशृङ्गम् पुनन्तिम्-अक्रूरमिति पुनः शिवम् कल्याणकारकत्वादुपद्रवहरम्पुनः समान शोभमान शुद्धदन्तम् निर्दोष सुन्दरप्रमाणदन्तोपेमिति पुनरमितगुणमङ्गलमुखम्-प्रभूतगुण विशिष्ट मङ्गलप्राप्तिकारणमिति // 2 // 34 // मूलपाठः-तओ पुणो हारनिकर खीरसागर ससंक किरणदगरयरयय-महासेलपंडरतरं (ग्रन्थ) 2003 रमणिज्जं पिच्छणिज्ज, थिरलठ्ठपउछ पीवरसुसिलिट्ठ विसिट्ठतिक्खदाढा विडंबियमुहं, परिकम्मिा जच्चकमलकोमलपमाणसोभंत लट्ठ उ8, रत्तप्पलपत्तमउअ सुकुमालतालुनिल्लालि अग्गजीहं मूसागयपवरकणगताविअआवत्तायंत वट्टतडिविमलसरिसनयणं विलासपीवरवरोरु, पडि पुन्नविमलखंध, मिउविस यमुहुमलक्खणपसस्थ विच्छिन्नकेसराडोवसोहिअं, ऊसिअ सुनिम्मि सुजाय अप्फोडिअलं गूलं, सोम, सोमाकारं, लीलायतं नहयलाओ ओवयमाणं, नियगवयणमइवयंत पिच्छइ सा गाढतिखम्गमहं, सीहं वयणसिरीपल्लवपत्तचारु जी // 3 // 35 // व्याख्या // ततो द्वितीय वृषभ स्वप्नानन्तरं तृतीये स्वप्ने सा त्रिशला गगनावतरन्तं स्वानेन प्रविशन्तं सिंह पश्यति-कीदृशमित्याह हारनिकरक्षीरसागरशशाङ्ककिरणजलकणमहारजतशैलपाण्डुरतरम्-पतत्तुल्यशुक्लाकारमिति पुनः रमणीयत्वेन प्रेक्षणीयं दर्शनीयम् पुनः स्थिर लष्ट प्रकोष्टम् दृढ हस्तावयवयुक्तमिति पुनवृत्तपीवरसुश्लिष्ट विशिष्ट तीक्ष्ण // 80 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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