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________________ प्रथमे उत्पत्तिस्कन्धे दशमः सर्गः। | 4-III A NEIGA SEII A ISIT WIFII Ille इत्युक्त्वा पुनरप्यूचे मनीषितचिकीर्षया। राजेन्द्र ! राजपत्नी ते सदा राज्याभिागिनी // 1 // पृथक तदियमस्माभिर्बहुमान्या मनस्विनी / राजवद् राजदारेषु वर्तितव्यमिति स्मृतिः // 2 // कल्याणि ! क्रियतामेषा मूर्ध्नि मन्दारमञ्जरी / अपत्यं त्रिजगन्मान्या तव कन्या भविष्यति // 3 // त्रिजगत्पावनी कन्या तावदन्या गुणोत्करैः / पुत्रास्त्रयः पुनर्बाले ! भविष्यन्ति ततः परम् // 4 // ततः स्मितमुखी राज्ञी राजा च पुनरूचतुः / भूयः सम्भावनार्थ नौ भगवन् ! भृशमर्थ्यसे // 5 // प्रसीद गर्भरूपेषु मिथ्या दुष्कृतमस्तु नौ / शिवास्ते सन्तु पन्थानः साधयस्व मनीषितम् // 6 // इत्यादिवादिनौ विद्वान् स तावापृच्छ्य दम्पती / उत्पपात पतङ्गश्रीोम्ना मुनिमहत्तरः // 7 // अथोपचितसर्वाङ्गी वल्लीव बहलच्छविः। गौडेन्द्रदुहिता देवी दधावापनसत्वताम् जाह्नवीजलमिश्रेण क्षीरसागरवारिणा / मुग्धा मजनमाधातुं बबन्ध हृदि दोहदम् सा सर्वगुणसंपूर्णां सकलक्लेशनाशिनीम् / अस्त तनयां सद्यो विद्यामुपनिषद् यथा पा सधा विधामुपानषद् यथा // 10 // नवोदितरविप्रायं विद्योवितदिगन्तरम् / ललाटे तिलकं तस्या नैसर्गिकमदृश्यत त्रिखण्डभरतैश्वयं पत्युः कुर्यादसाविति / अश्रूयत च लोकेन व्योम्नि वागशरीरिणी // 12 // III III II II कानात
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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