________________ All III ASIA ISII AISII NISHI AISille अन्यदा वरदानीरवानीरस्वैरमारुताः / विजहार तया साकं स वसन्ते वनस्थलीः // 8 // तयोस्तस्य विचित्राणि मृगद्वन्द्वानि पश्यतोः। दृक्पथं प्राप सापत्या काचित् कपिकुटुम्बिनी // 9 // तस्याः प्रबललीलाभिर्वाललालनकेलिभिः / उभयोरभवच्चित्तं निरपल्याऽऽकुलम् // 10 // पादपेनेव वन्ध्येन राज्येन किमनेन नः ? / इत्यपत्यविहीनौ तौ दुःस्थितौ हृदि तस्थतः // 11 / / तदर्थ तत्परौ नित्यं व्रतस्थौ विजितेन्द्रियौ / चिरं चक्रेश्वरी देवीमुपासामासतुः स्वयम् // 12 // शीर्णपर्णफलाहारौ कुशश्रस्तरशायिनौ / कृतत्रिपवणौ शश्वजापहोमपरायणौ शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गशृङ्गारितचतुर्भुजाम् / पक्षान्ते पक्षिराजस्थामादिशक्तिमपश्यताम् // 14 // (युग्मम् ) देवि ! सेवासमायातदेवासुरनरस्तुते ! / त्रासितारिचमचक्रे ! चक्रेश्वरि ! नमोऽस्तु ते // 15 // अम्ब त्रिभुवनस्तम्बकादम्बिनि नितम्बिनि सिद्धिशालिकरस्थालि! महाकालि! नमोऽस्तु ते // 16 // सर्वपापापहाराय संहाराय दुरात्मनाम् / दौःस्थ्यविस्तारपाराय नारायणि ! नमोऽस्तु ते // 17 // इत्युपश्लोकयन्तौ तौ प्रेमगद्गदया गिरा / जगाद जगतां माता जङ्गमा कल्पवल्लरी // 18 // प्रीताऽस्मि युवयोर्वत्सौ! नियमोऽयं समाप्यताम् / मयैव प्रेरितः प्रातः समागत्य शमाम्बुधिः // 19 // चारणश्रमणः श्रीमान् मुनिर्दमनकाभिधः / युवा युवा जवेनैव स्वशक्त्याऽनुग्रहीष्यति // 20 // (युग्मम्) इत्युक्त्वाऽन्तर्हितायां च तस्यां भुवनमातरि। तौ निशान्ते निशान्तस्थौ निद्रामुद्राममुश्चताम् // 21 // IAI SHRII AIRIISISHIKe SEIL AISI A