________________ नलयोधने तिलक मञ्जर्या उदाहरणम्। सर्गः३ // 148 // बजाHIATIGATHII-II IISE धूर्तः सिंहलकः कान्त्यां नरदत्ता गृहाङ्गणे / द्यूते हारितसर्वस्वस्तन्मृत्तिं भक्तमुद्यतः विशूकं पापिनं देवी कितवं तमबोधयत् / स्वयं पञ्चशतद्रव्यमूल्यां गाथां समर्प्य सा मूर्खस्तद्विक्रयाकाही स भ्रमन् पत्रिकाकरः / अमुच्यत मृषा सर्वैः स गाथार्थावधीरणम् देवदत्तात्मजो विद्वान् तां गाथां मन्मथाभिधः / यथामूल्येन जग्राह गाथा सा चेयमीदृशी “यदत्र लिखितं धात्रा न तत्परिणतिवृथा / इति मत्वा ध्रुवं धीरा विधुरेऽपि न कातराः" स वृथार्थव्ययक्रोधात् पित्रा निर्वासितो गृहात् / पुरान् बहिः सरस्तीरे तस्थौ देशान्तरोन्मुखः तत्र नक्तं मृगभ्रान्त्या तं व्याधशरताडितम् / रक्तगन्धेन भारुडो वार्धिद्वीपे गृहीतवान् तत्र मुक्तो दयाइँण लब्धसञ्ज्ञः स पक्षिणा / ददर्श केवलं व्योम वारिधिं च दुरुत्तरम् स्मरन् गाथार्थमेवैकमेकाकी स वणिग्वरः / नालिकेरादिभिवृत्तिं वितन्वन्ननयद् दिनान् प्रवालमौक्तिकादीनां विष्वक् कूटानकल्पयत् / स्वर्णमिश्रेष्टिकायुग्मान्याख्यागर्भाणि चाकरोत् अथ सांयात्रिकेशस्य भृत्याः शाल्वस्य वारिणे / संस्थाप्य जलधौ पोतं तत्र द्वीपे समाययुः मर्मज्ञः सोऽपि तैः पृष्टः स्वनिस्तारं विचारयन् / पोतेशघटनापूर्व वार्याख्यातुममन्यत ततः पोतपतिः प्रीत्या तस्य सिद्धप्रयोजनः / कूपे तद्धनलोभान्धस्तं तटस्थमपातयत् तस्य सर्वस्वमादाय सांयात्रिकपतौ गते / स कूपपतितोऽप्यन्तर्गाथार्थैकपरोऽभवत् // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // // 148 //