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________________ पञ्चमे कुण्डिन स्कन्धे // 63 // // 64 // प्रति सगेः 21 | गच्छन्ती न दमयन्ती। // 142 // DISEII ISIATIGATHI ALEARNTAIIIEIKS चित्तं चरति सामर्थ्यात् पिहितेष्वपि वस्तुषु / पयोदान्तरितेऽपीन्दौ नन्दन्ति कुमुदाकराः सामान्यक्षत्रियामात्रं विदधाना तु संस्तवम् / रुरोध रभसं तस्या भैमी विनयवृत्तिभिः तां मातुरपरां मूर्ति दृष्ट्वाप्यजनि न श्लथम् / दुःखार्तमपि तच्चेतो लञ्जारज्जुनियत्रितम् आसन्नासनदानेन सस्मितालोकनेन च / दर्शिताद्भुतवात्सल्यात् तां च मातृष्वसावदत दिष्ट्या त्वमिह कल्याणि ! यद् दृष्टासि विलोचनैः / इयता सफलं मन्ये जीवितं किमतः परम् निमेषेणैव मानुष्यं केवलं तव सूच्यते / तिरस्करोषि पद्माक्षि ! प्रभया तु सुरानपि इत्थमद्भुतसद्भावा का त्वं ? कस्य परिग्रहः / इति नन्वनुयोक्तुं त्वामुत्कण्ठा नुदतीव माम् ननु त्वं तनयातुल्या तवेदं पुत्रि ! मन्दिरम् / प्राणैरपि प्रियं कत्तुं तव वाञ्छामि सुन्दरि ! यदि नैव स्वतन्त्रासि यदि कार्योन्मुखासि वा / तथापि मम तोपाय किश्चिदत्र स्थिरीभव यात्राभिमुखचित्तां त्वां वरयानेन सत्वरम् / अहमेव प्रहेष्यामि यथाभिमतसिद्धये एवमुक्तावदद् भैमी देवि! धन्यासि सर्वथा / यदित्थं मयि निर्व्याजं ममत्वं तव वर्तते पति, निषधावासी क्षत्रियः सुभगो युवा / द्यूतापहृतसर्वस्वः स त्यक्त्वा मां क्वचिद् ययौ तत् संप्रति यियासन्ती कुण्डिनं पितृमन्दिरम् / अहमत्र तवादेशात् स्थितास्मि त्वद्यदृच्छया न मे भोजनसंपर्क ब्यापारं पुरुषेषु वा / कश्चिदहति निर्देष्टुं इति स्थातुं पणो मम // 67 // // 68 // // 69 // / / 70 // // 71 // // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // HILAIHINI TISSIFI AISISTEII // 142 //
SR No.600449
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2001
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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