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________________ ज्ञानसारे मोनाष्टकम् GIBET OTACZACCONTIESAS. व्याख्या-स्पृहारहितो मुनिः नगरवासिनां वन्दनीयत्वात् निजमहत्वं शोभया चोत्तमत्वं जातिकुलसम्पनत्वात् प्रसिद्धिं च न प्रकटयेत् // 6 // भूशय्या भेक्षमशनं, जीर्ण वासो गृह वनम् / तथापि निःस्पृहस्याहो, चक्रिणोऽप्यधिक सुखम् // 7 // || ___ व्याख्या- पृथिवी एव सुखशय्या, भिक्षासमूहाद्भोजनं, जीर्ण वस्त्रं, गृहं तु वनं तथापि महदावर्य यत्, चक्रवर्तिनो राज्ञः अपेक्षयाधिकं सुखं निःस्पृहस्य योगिनो भवति // 7 // परस्पृहा महादुःखं, निःस्पृहत्वं महासुखम् / एतदुक्तं समासेन, लक्षणं सुखदुःखयोः // 8 // ____व्याख्या-परस्य या आशा सैव महाकष्टमस्ति, निःस्पृहत्वं च महत्सुखमस्ति, इत्थं संक्षेपेण सुखदुःखयोः लक्षणं | कथितम् // 8 // // इति द्वादशं निःस्पृहाष्टकम् // CHOUDELGeeeeeDial // अथ त्रयोदशं मौनाष्टकम् // मन्यते यो जगत्तत्वं, स मुनिः परिकीर्तितः / सम्यक्त्वमेव तन्मौनं, मौनं सम्यक्त्वमेव वा // 1 // ||
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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