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________________ सानसारे तपोष्टकम् ( तथा ) श्रीवीरचरित्रे- प्रथमसर्गे श्लोक 231 ) ज्ञानाचारोऽष्टधा प्रोक्तो, यः कालविनयादिकः / तत्र मे कोप्यतिचारो, योऽभूनिन्दामि तं विधा // 1 // यः प्रोक्तो दर्शनाचारो, ऽष्टधा निःशङ्कितादिकः / तत्र मे योऽतिचारोऽभूत्, विधाऽपि व्युत्सृजामि तम् // 2 // या कृता प्राणिनां हिंसा,सूक्ष्मा वा बादराऽपि वा / मोहाद्वा लोभतो वाऽपि, व्युत्सृजामि त्रिधापि ताम् // 3 // हासमीक्रोधलोभाये-चन्मया भाषितं मृषा / तत्सर्वमपि निन्दामि, प्रायश्चितं चरामि च // 4 // अन्पं भूरि च यत्स्वापि, परद्रव्यमदत्तकम् / आत्तं रागादथ द्वेषा-सत्सर्व व्युत्सृजाम्यहम् // 5 // तैग्श्चं मानुषं दिव्यं, मैथुनं मयका पुरा / यत्कृतं त्रिविधेनापि, त्रिविधं व्युत्सृजाम्यहम् // 6 // बहुधा यो धनधान्य-परवादीनां परिग्रहः / लोभदोषान्मयाऽकारि, व्युत्सृजामि त्रिधाऽपि तम् // 7 // पुत्रे कलत्रे मित्रे च, बन्धौ धान्ये धने गृहे / अन्येष्वपि ममत्वं यत्, तस्सर्व व्युत्सृजाम्यहम् // 8 // इन्द्रियैरभिभतेन, यदाहारश्चतुर्विधः / मया रात्रावुपामोजि, निन्दामि तमपि विधा // 9 // क्रोधो मानो माया लोभो, रागो द्वेषः कलिस्तथा / पैशून्यं परनिर्वादो-ऽभ्याख्यानमपरं च यत् // 10 // चारित्राचारविषयं, दुष्टमाचरितं मया / तदहं त्रिविधेनापि, व्युत्सृजामि समन्ततः // 11 // यस्तपः स्वतिचारोऽभूत्, बाह्येवम्पन्तरेषु च / त्रिविधं त्रिविधेनापि, निन्दामि तमहं खल // 12 // IDENTIFICADODcac // 153 //
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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