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________________ D ज्ञानसारे तपोष्टकम् GENOEG धर्मानुष्ठानविषये, यद्वीय गोपितं मया / वीर्याचारातिचारं च, निन्दामि तमपि त्रिधा // 13 // हतो दुरुक्तश्च मया, यो यस्याहारि किश्चन / यस्यापाकारि किञ्चिद्वा, मम क्षाम्यतु सोऽखिलः // 14 // यश्च मित्रममित्रो वा, स्वजनोऽरिजनोऽपि वा / सर्वः शाम्यतु मे सर्व, सर्वेष्वपि समोऽस्म्यहम् // 15 // तिर्यक्त्वे सति तिर्यञ्चो, नारकत्वे च नारकाः / अमरा अमरत्वे च, मानुषत्वे च मानुषाः // 16 // ये मया स्थापिता दुःखे, सर्वे क्षाम्यन्तु ते मम / क्षाम्याम्यहमपि तेषां, मैत्री सर्वेषु मे खलु // 17 // जीवितं यौवनं लक्ष्मी, रूपं प्रियसमागमः / चलं सवमिदं वात्या-नर्तिताब्धितरङ्गवत् // 18 // व्याधिजन्मजरामृत्यु-प्रस्तानां प्राणिनामिह / विना जिनोदितं धर्म, शरणं कोऽपि नापरः // 19 // सर्वेऽपि जीवाः स्वजना, जाताः परजनाश्च ते / विदधीत प्रतिबन्ध, तेषु को हि मनागपि // 20 // अर्हन्तो मम शरणं, शरणं सिद्धसाधवः / उदोरितः केवलिमि-धर्मः शरणमुच्चकैः // 21 // चतुर्विधाहारमपि, यावज्जीवं त्यजाम्यहम् / उच्छ्वासे चरमे देह-मपि हि व्युत्सृजाम्यहम् // 22 // दुष्कर्मगर्हणां जन्तु-क्षामणां भावनामपि / चतुःशरणं च नम-स्कारं चानशनं तथा // 23 // एवमाराधनां पोढा, स कृत्वा नन्दनो मुनिः / धर्माचार्यानक्षमयत, साधून साध्वीश्च सर्वतः // 24 // षष्टिं दिनान्यनशनं, पालयित्वा समाहितः / पञ्चविंशत्यब्दलक्ष-पूर्णायुः सोऽममो मृतः // 25 // प्राणतस्वर्गे समुत्पन्न: आयुर्विशतिसागरोपममितं सोऽपूरिदेवाग्रणीः, पर्यन्तेऽपि विशेषतः प्रतिकलं देदीप्यमानः भिया / evacuaeracrawaevacuat. GEDOENDE // 154 //
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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