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________________ सबसम ज्ञानसारे। लोक्यातपरमार्थदायकत्वाद्यतिशयोपेताऽहत्पदवी साधकपुरुषस्य यथार्थमापितस्य आसन्ना इव इत्येवं सर्वमप्यौपाधिकमपहाय स्वीयरस्नत्रये साधना विधेया, येन सर्वा ऋद्धयो निष्पद्यन्ते / इत्यादिधर्मवाक्यात्प्रबुद्धः सर्वबाह्यसम्पदा क्षणभङ्गुरतां विज्ञाय स राजा साधुधर्म जमाह / बाह्यासु सम्पत्सु क्षणकभङ्गरं, धार्य स्वरूपं खलु भूमिपालवत् / स्वात्मस्थितं वासवसार्वभौमज, सर्वद्धियुग्ज्ञेयमिदं सुखं शुभैः // 1 // // इति विंशतितमे सर्वसमृद्धधष्टके भूमिपालनृपकथानकम् // 20 // नवब्रह्मसुधाकुण्ड-निष्ठाधिष्ठायको मुनिः / नागलोकेशवदाति, क्षमां रक्षन प्रयत्नतः // 4 // व्याख्या-नवधा ब्रह्मचर्यरूपामृतकुण्डस्य तनिष्ठत्वसामर्थ्यात् स्वामी पत्नात्सहिष्णुतां पालयन् मुनिः नागलोकाधिपतिरिव शोभते यो नागलोकेशः शेषनागः स क्षमा पृथ्वीं दधानः शोभते // 4 // मुनिरध्यात्मकैलाशे, विवेकवृषभास्थितः। शोभते विरतिज्ञप्ति-गङ्गागौरीयुतः शिवः // 5 // व्याख्या- मुनिः अध्यात्मरूपे कैलाशे सदसतोः निर्णयरूपविवेकवृषभे आरूढः तथा विरतिः-चारित्रकला, झप्तिः-ज्ञान( कला, ताभ्यां गङ्गागौरीभ्यां युक्तः शङ्करः इव शोभते // 5 // ज्ञानदर्शनचन्द्रार्क-नेत्रस्य नरकच्छिदः / सुखसागरमग्नस्य, किं न्यूनं योगिनो हरेः // 6 // व्याख्या -ज्ञान-विशेषवोधः दर्शन-सामान्यबोधः तावेव चन्द्राओं नेत्रे यस्य स तथाभूतस्य: नरकगते शकस्य सख OCCIOCCORSO Moreovalemalelevan // 10 //
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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