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________________ करणनि आवश्यक नियुक्तेरक चूर्णिः क्षेपाः भा० मा० 170-175 नि०या० 1030 // 433 // *&&&&KKEESEX आहारे संघाओ परिसाडो अ समयं समं होइ / उभयं जहन्नमुकोसयं च अंतोमुहुत्तं तु // 17 // (भा) __ आहारके संघातः शाटश्च कालतः समयं समं तुल्यं स्यात्, उभयं द्विधाप्यन्तर्मुहूर्तमेव, उत्कृष्टाजघन्यो लघुतरः॥१७०॥ बंधणसाडुभयाणं जहन्नमंतोमुहुत्तमंतरणं / उक्कोसेण अवहुं पुग्गलपरिअदृदेसूणं // 171 // (भा०) त्रयाणां जघन्यमन्तर्मुहूर्तमन्तरकरणं सकृत् परित्यागानन्तरमन्तर्मुहुर्तेनैव तदारम्भात् // 171 // तेआकम्माणं पुण संताणाणाइओ न संघाओ। भवाण हुन्ज साडो सेलेसीचरमसमयंमि // 172 // (भा) / सन्तानानादितो न संघातः॥ 172 // उभयं अणाइनिहणं संतं भवाण हुज केसिंचि / अंतरमणाइभावा अच्चंतविओगओ नेसिं // 173 // (भा०) सान्तमुभयं भव्यानां केषाञ्चित् , नतु सर्वेषां, अन्तरमनादिभावादत्यन्तवियोगतश्च नानयोः // 173 // अथवेदमन्यजीवप्रयोगनिवृत्तं चतुर्विधं करणम्अहवा संघांओ साडणं च उभयं तहोभयंनिसेहो / पर्ड संखे सगड थूाँ जीवपओगे जहासंखं // 174 // (भा०) जीवप्रयोग इति जीवप्रयोगकरणे तत्कायव्यापारमाश्रित्य, पटस्तन्तुसंघातात्मकत्वात्संघातकरणं, शङ्खस्त्वेकान्तशाटकरणादेव शाटकरणं, शकटं तु तक्षणकीलिकादियोगादुभयकरणं, स्थूणा पुनरूद्धतिर्यकरणयोगात्संघातशाटविरहादुभयशून्या, |उक्तं द्रव्यकरणं, [साम्प्रतं क्षेत्रकरणस्यावसरः, तत्रेयं नियुक्तिगाथा-] खितस्स नस्थि करणं आगासं जं अकित्तिमो भावो / वंजणपरिआवन्नं तहावि पुण उच्छुकरणाई // 1030 // 433 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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