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________________ आवश्यकनियुक्तेरव करण नि. क्षेपाः भा० गा० 160-164 // 430 // निष्पद्यते आद्यानां च तत्रयाणां, तैजसकार्मणयोस्तदसम्भवात् // 158-159 // सीसमुरोअरैपिट्टी दो बाँह ऊरुआँ य अटुंगा। अंगुलिमाइ उवंगा अंगोवंगाणि सेसाणि // 160 // (भा०). तत्रौदारिकादीनामष्टाङ्गानि मूलकरणं, तान्याह, शेषाणि करपादादीनि // 160 // किञ्चकेसाईउवरयणं उरालविउवि उत्तरं करणं / ओरालिए विसेसो कन्नाइविणट्ठसंठवणं // 161 // (भा०) | 'केशाद्युपरचनं' केशादिनिर्मापणसंस्कारौ आदिशब्दान्नखदन्ततद्रागादिपरिग्रहः औदारिकवैक्रिययोरुत्तरकरणं, तथौदारिके विशेष उत्तरकरणे, कर्णादिविनष्टसंस्थापन, नेदं वैक्रियादौ // 161 // आइल्लाणं तिण्हं संघाओ साडणं तदुभयं च / तेआकम्मे संघायसाडणं साडणं वावि // 162 // (भा०) अथवेदं त्रिविधं करणं-संघातकरणं परिशाटकरणं संघातपरिशाटकरणं च, तत्राद्यानां त्रयाणां शरीराणां त्रिविधमप्यस्ति, तैजसकार्मणयोस्तु चरमद्वयमेवेति // 162 // आह च औदारिकमाश्रित्य संघातादिकालमानमाह संघायमेगसमयं तहेव परिसाडणं उरालंमि / संघायणपरिसाडण खुड्डागभवं तिसमऊणं // 16 // (भा०) __ सर्वसंघातकरणमेकसमयं एकान्ताऽऽदानस्यैकसामयिकत्वात् , तथैव परिशाटनं, उभयकरणं तु क्षुल्लकभवग्रहणं त्रिसमयोनं, [तच्च ] विग्रहसमयौ एकस्संघातसमयस्तैन्यूनं // 163 // एयं जहन्नमुक्कोसयं तु पलिअत्तिअंतु समऊणं / विरहो अंतरकालो ओराले तस्सिमो होइ॥१६४॥ (भा०) // 430 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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