________________ बावश्यक नियुक्तेरव- चूर्णिः // 387 // यः क्रौञ्चकापराचे सति क्रौश्चकमेव नाचष्टे, अपि तु स्वप्राणत्यागं व्यवसितः, तमनुकम्पया जीवितमनपेक्ष मेतार्यऋषि aa दृष्टान्ताः नमस्ये // 869 // नि० गा० निप्फेडियाणि दोण्णिवि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि / न य संजमाउ चलिओ मेयज्जो मंदरगिरिव्व // 870 // 870-875 'निष्कासिते' क्षितौ पातिते द्वे अपि शिरोबन्धनेन // 870 // सम्यग्वादमाहदत्तेण पुच्छिओ जो जण्णफलं कालओ तुरुमिणीए / समयाए आहिएणं संमं वुइयं भदंतेणं // 871 // 'दत्तेन' धिग्जातिनृपेण पृष्टः, तुरुमिण्यां पुर्या तेन समतया आहितेन-गृहीतेनेहलोकभयमनपेक्ष्य सम्यगुदितं भदन्तेन // 871 // समासद्वारमाह जो तिहि पएहि सम्मं समभिगओ संजमं समारूढो / उवसमविवेयसंवरचिलायपुत्तं णमंसामि // 872 // त्रिभिः पदैः उपशमविवेकसंवररूपैः सम्यक्त्वं समभिगतः-प्राप्तः, उपशमादिगुणानन्यत्वाच्चिलातपुत्र एव उपशमविवेकसंवरः, स चासौ चिलातपुत्रश्च तं // 872 // अहिसरिया पाएहिं सोणियगंधेण जस्स कीडीओ / खायंति उत्तमंगं तं दुक्करकारयं वंदे // 873 // 1 // 387 // अभिसृताः॥ 873 // धीरो चिलायपुत्तो मूयइंगलियाहिं चालिणिव्व कओ। सो तहवि खन्जमाणो पडिवण्णो उत्तम अहं // 874 // अड्डाइजेहिं राइंदिएहिं पत्तं चिलाइपुत्तेणं / देविंदामरभवणं अच्छरगणसंकुलं रम्मं // 875 // &XXXXX************** **