________________ आवश्यकनियुक्तरव चूर्णिः // 386 // मा सोऽस्यास्तीति समयिकं, सम्यग्वादः, शोभनमसनं क्षेपणं समासः, अपवर्गे [गमनं] आत्मनः कर्मणो वा जीवात् , संक्षेपःसामायिकास्तोकाक्षरं सामायिक महाथ च, अनवद्यं, परिः-समन्ताज्ज्ञानं परिज्ञा, परिहरणीयवस्तुप्रत्याख्यानं च, एते सामायिकपर्याया देरनुष्ठातॄणां अष्टौ // 864 // एतेषामर्थानामनुष्ठातृन यथासङ्ख्येनाह दृष्टान्ताः दमदंते मेयजे कालयपुच्छा चिलाय अत्तये / धर्मरुइ इला तेयंलि सामाइए अट्ठदाहरणा // 865 / / नि० गा० चिलातः, आत्रेयः॥ 865 // सामायिकमर्थतो दमदन्तेन कृतमित्याह 865-869 निक्खंतो हथिसीसा दमदंतो कामभोगमवहाय / णवि रजइ रत्तेसुं दुहेसु ण दोसमावज // 151 // (भा.) हस्तिशीर्षान्नगरात् // 151 // मुनय एवम्भूता एव स्युः, तथा चाऽऽहवंदिजमाणान समुक्कसंति हीलिजमाणा न समुज्जलंति। दंतेण चित्तेण चरंति धीरा मुणी समुग्धाइयरागदोसा॥८६६ 'समुक्कसंति'त्ति समुत्कर्ष यान्ति // 866 // तथा| तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइण होइ पावमणो / सयणेय जणे य समो समो य माणावमाणेसुं॥ 867 // ___यदि सुमनाः, 'भावेन च' आत्मपरिणामरूपेण // 867 // णत्थि य से कोइ वेसो पिओ व सब्वेसु चेव जीवेसु / एएण होइ समणो एसो अण्णो वि पज्जाओ // 868 // // 386 // नास्ति च 'से' तस्य कोऽपि द्वेष्यः प्रियो वा // 868 // सामयिके मेतार्यमाहजो कोंचगावराहे पाणिदया कोंचगं तु णाइक्खे / जीवियमणपेहंत मेयजरिसिं णमंसामि // 869 //