________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः TERROREXXX कथं सामा|यिकादिप्राप्ति दुर्लभस्थानानि युगदृष्टान्तं // 378 // क्षेत्रमार्य, जातिर्मातृसमुत्था, कुलं पितृसमुत्थं, रूपमन्यूनाङ्गता, बुद्धिः परलोकप्रवणा, श्रवणं धर्मसम्बद्धं अवग्रहस्तदव. धारणं, संयमो अनवद्यानुष्ठानं, एतानि दुर्लभानि, एतदवाप्तौ च विशिष्टसामायिकलाभः॥८३१॥ अथ चैतानि दुर्लभानिइंदियलद्धी निव्वत्तणा य पजत्ति निरुवहयखेमं / धायारोग्गं सद्धा गाहगउवओग अट्ठो य // 1 // (अन्यदीया) ___चोल्लग पासग धण्णे जूए रयणे य सुमिण चक्के य / चम्मजुगे परमाणू दस दिटुंता मणुयलंभे // 832 // इन्द्रियलब्धिः पञ्चेन्द्रियलब्धिः, निवर्त्तना चेन्द्रियाणामेव, पर्याप्तिः-स्वविषयग्रहणसामर्थ्य, निरुपहतेन्द्रियता, क्षेमं विषयस्य, घातं सुभिक्षं, [श्रद्धा भक्तिः] ग्राहको गुरुः, उपयोगः श्रोतुस्तदभिमुखता, अर्थित्वं च धर्मे // 1 // भिन्नकर्तकीयं / जीवो मानुष्यं लब्ध्वा पुनस्तदेव दुःखेन लप्स्यते, बह्वन्तरायान्तरितत्वात् , चोल्लकादिवत्, कं-चोलकभोजनं 'चम्मत्ति शेवालपटलं // 832 // युगदृष्टान्तमाहपुर्वते होज जुगं अवरंते तस्स होज समिला उ / जुगछिडुमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो॥ 833 // जलधेः पूर्वान्ते, एवं यथा युगच्छिद्रे प्रवेशः संशयितः, एवं मनुष्यलाभः // 833 // जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि / पविसेज जुग्गछिडु कहवि भमंती भमंतंमि // 834 // प्रविशेत् युगच्छिद्रं कथमपि भ्रमन्ती युगे // 834 // सा चंडवायवीचीपणुल्लिया अवि लभेज युगछिडूं। ण य माणुसाउ भट्टो जीवो पडिमाणुसं लइइ // 835 // सा समिला // 835 // नि० गा० 832-835 XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX // 378 //