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________________ दिकखरूप आवश्यकनिर्युक्तेरव चूर्णिः // 368 // | 0 | 5333KXXXXXXXXXXXXXXXXXX सगडुद्धिसंठिताओ महादिसाओ भवंति चत्तारि। / मुत्तावली य चउरो दो चेव य होन्ति रुयगनिभा // 3 // इयं स्थापना, आसां च नामानि इंदग्गेई जम्मा य णेरती वारुणी य वायचा। _ _ _ 0 _ | सोमा ईसाणावि य विमला य तमा य बोद्धव्वा // 1 // इंदा विजयद्दाराणुसारतो सेसिया पदक्खिणतो। / / / अढवि तिरियदिसाओ उडे विमला तमा चाधो // 2 // तापः-सविता तदुपलक्षिता क्षेत्रदिक् ताप [क्षेत्र ] दिक, [सा चानियता-'जेसिं जत्तो सूरो उदेति तेसिं तई हवइ | पुव्वा / तावक्खेत्तदिसाओ पयाहिणं सेसियाओसिं // 1 // ' 'पण्णवए' त्ति प्रज्ञापकस्य दिक् प्रज्ञापकदिक्-'पण्णवओ जदभिमुहो सा पुब्वा सेसिया पदाहिणतो / तस्सेवणुगंतव्वा अग्गेयादी दिसा नियमा // 2 // ', सप्तमी भावदिकू सा भवत्यष्टादशविधैव, दिश्यतेऽयममुक इति संसारी यया सा भावदिकू], सा चेत्थं स्यादष्टादशविधा पुढविजलजलण वाया मूला खंधग्गपोरबीया य / बितिचउपंचेंदिय तिरियनारगा देवसंघाया॥१॥ संमुच्छिमकमाकम्मभूमगणरा तहऽन्तरदीवा / भावदिसा दिस्सइ जं संसारी णिययमेताहिं // 2 // इह च नामस्थापनाद्रव्यदिग्भिरनधिकार एव, शेषासु यथासम्भवं सामायिकस्य प्रतिपद्यमानकः पूर्वप्रतिपन्नो वा वाच्यः, // 368 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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