________________ आवश्यकनिर्युक्तेरव चूर्णिः // 356 // निवाः | भा० गा. 140-142 ततस्तेन भस्मोद्धूलितेन वैशेषिकं मतं प्रवर्तितं / *नय०॥ भूजलजलणानिलनहकालदिसाऽऽया मणो य दवाई। भण्णति नवेयाई सत्तरस गुणा इमे अण्णे // 2 // रूवरसगंधफासा संखापरिमाणमहपुहुत्तं च / संजोग विभागपराऽपरत्त बुद्धी सुहं दुक्खं // 3 // इच्छा दोस पयत्ता एत्तो कम्मं तयं च पंचविहं / उक्खेवणवक्खेवणपसारणाऽऽकुंचणं गमणं // 4 // सत्ता सामण्णं पिय सामण्णविसेसया विसेसो य / समवाओ य पयत्था छ छत्तीसप्पभेया य // 5 // पगईए अगारेण य नोगरोनिसेहओ सब्वे / गुणिआ ओयालसयं पुच्छाणं पुच्छिओ देवो // 6 // इक्कि'०॥ पुढवि त्ति देइ लेटू देसो वि समाणजाइ| लिंगोत्ति / पुढवि त्ति सोऽपुढवीं देहित्ति देइ तोयाई॥८॥ जीवं० // जीव०" // 139 // अमुमेवार्थमुपसंहरन्नाह वाए पराजिओ सोनिधिसओ कारिओ नारदेणं / घोसावियं च णगरे जयइ जिणो बद्धमाणोत्ति // 140 // (मू.भा.) पंचसया चुलसीया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स / अबद्धियाण दिट्ठी दसपुरनयरे समुप्पण्णा // 141 // (मू. भा.) | दसपुरे नगरुच्छुघरे अजरक्खयपूसत्तमितियगं च / गोट्ठामाहिल नवमट्ठमेसु पुच्छा य विंझस्स // 142 // (मू.भा.) दशपुरनगरे उत्पन्ना आयरक्षिताः, तैरिक्षुगृहे तोसलिपुत्राचार्या दृष्टिवादपाठाय पार्थिताः, ततस्तदन्तिके प्रव्रज्य साधिकनवपूर्वाणि जगृहुस्ते आर्यवैरान्तो पश्चादनुज्ञा जाता तेषां दुबलिकाघृतवस्त्रपुष्यमित्रा(कापुष्यमित्रगोष्ठामाहिलफल्गुरक्षिता)ख्यं शिष्यत्रय, तत्र दुर्बलिकापुष्यमित्रस्यार्यरक्षितैर्दिवं गच्छद्भिराचार्यपदं दत्तं, अन्यदा गोष्ठामाहिलो गुरावभिनिविष्टः सन् प्रत्युच्चारकं विन्ध्यं नवमे पूर्वे साधूनां सावधिप्रत्याख्यानं अष्टमे कर्मप्रवादे च बद्धस्पृष्टनिकाचितभेदभिन्नकर्म प्ररूपयन्तं *1-7-9-10 अङ्कवत्यो गाथा न कापि लब्धा अतः केवलं तासां प्रतीका दत्ताः। // 356