________________ बावश्यकनिर्युक्तेरव निहवाः भा० गा० 128-134 चूर्णिः // 353 // BORR**XXXXXXXXXXXXXXXX रायगिहे गुणसिलए वसु चोहसपुवि तीसगुत्ताओ। आमलकप्पा णयरी मित्तसिरि कूरपिंडाई // 128 // (मू.भा.) राजगृहे गुणशीलके उद्याने वसुराचार्यश्चतुर्दशपूर्वी समवसृतः, तच्छिष्यात्तिष्यगुप्तादेषा दृष्टिरुत्पन्ना, स मिथ्यात्वाभिभूत आमठकल्पां नगरी गतः तत्र मिश्रश्रीश्रावकस्तेन कूरबुच्चकादि (कूरसित्थकादि) दृष्टान्तेन प्रतिबोधितः॥ 128 // चोदा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स / अव्वत्तयाण दिट्ठी सेयवियाए समुप्पन्ना // 129 // (म.भा.) सेयवि पोलासाढे जोगे तद्दिवसहिययसूले य / सोहंमि णलिणिगुम्मे रायगिहे मुरिय बलभद्दे // 130 // (म.भा.) . श्वेतव्यां पोलासे उद्याने आषाढाख्य आचार्यों योगे उत्पाटिते सति तद्दिवस एव च हृदयशूले चोत्पन्ने मृत इति वाक्यशेषः, स च सौधर्म नलिनीगुल्मे विमाने समुत्पद्यावधिना पूर्ववृत्तान्तं ज्ञात्वा शिष्याणां योगान् सारितवानिति वाक्यशेषः / स्वर्गते तस्मिन्नव्यक्तमतास्तच्छिष्या विहरन्तो राजगृहे मौर्ये बलभद्रो राजा तेन सम्बोधिता इति वाक्यशेषः॥१३०॥ वीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स / सामुच्छेइयदिट्ठी मिहिलपुरीए समुप्पण्णा // 13 // (मू. भा.) मिहिलाए लच्छिघरे नहगिरिकोडिण्ण आसमित्ते य / णेउणियाणुप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य // 132 // (मू.भा.) मिथिलायां लक्ष्मीगृहोद्याने महागिरेराचार्यस्य शिष्यः कोण्डिन्यस्तस्थौ / तस्य शिष्योऽश्वमित्रोऽनुप्रवादे पूर्वे नैपुणिक वस्तु पठन् उत्पन्नक्षणक्षयमतिः, राजगृहे खण्डरक्षा नाम श्रमणोपासकास्ते च सुंक(शुल्क )पालास्तैः प्रतिबोधिताः // 132 // अट्ठावीसा दोवाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स। दो किरियाणं दिट्ठी उल्लुगतीरे समुप्पण्णा॥१३३॥ (मू.भा.) णइखेडजणव उलुग महगिरिधणगुत्त अज्जगंगेय / किरिया दो रायगिहे महातवो तीरमणिणाए॥१३४॥ (मू.भा.) का॥३५३॥