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________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः चत निहवाः नि० गा० 782-783 भा० गा० 125-127 // 352 // चोदस सोलस वासा चोदसवीसुत्तरा य दोषिण सया। अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला // 782 // चतुर्दशाधिके द्वे शते, विंशत्युत्तरे च [द्वे शते] वर्षाणामिति गम्यते, अष्टाविंशत्यधिके च द्वे शते, पश्चैव शतानि चतुश्चत्वारिंशत्या(शद)धिकानि॥ 782 // पंच सया चुलसीया छच्चेव सया णवोत्तरा होति / णाणुपत्तीय दुवे उप्पण्णा णिचुए सेसा॥७८३ // ज्ञानोत्पत्तेरारभ्य चतुर्दश षोडश वर्षाणि यावदतिक्रान्तानि तावदत्रान्तरे द्वावाद्यावुत्पन्नौ, उत्पन्ना निवृते वीरे यथोक्त- काले चातिक्रान्ते शेषा अव्यक्तादयः / बोटिकप्रभवकालाभिधानं लाघवार्थमेव // 783 // सूचितमेवार्थ मूलभाष्यकृदाहचोद्दस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स णाणस्स / तो बहुरयाण दिट्ठी सावत्थीए समुप्पण्णा // 125 // (मू.भा.) यथा उत्पन्नास्तथा दर्शयन् सङ्ग्रहगाथामाहजेट्ठा सुदंसण जमालिऽणोज सावत्थितेंदुगुजाणे / पंचसया य सहस्सं ढंकेण जमालि मोत्तूणं ॥१२६॥(मू. भा.) ज्येष्ठा सुदर्शना अनोद्या (अनवद्या) इति जमालिगृहिण्या नामानि, श्रावस्त्यां तिन्दुकोद्याने जमालेरेषा दृष्टिरुत्पन्ना, तत्र पञ्चशतानि साधूनां सहस्रं च संयतीनां एतेषां यत्स्वयं न प्रतिबुद्धं तत् ढङ्केन प्रतिबोधितमिति वाक्यशेषः, जमालिं| मुक्त्वा / अन्ये तु व्याचक्षते ज्येष्ठा महत्तरा सुदर्शनाख्या भगवतो भगिनी तस्या जमालिः पुत्रः तस्य अनोद्या (अनवद्या) नाम भगवत्पुत्री भार्या, शेषं पूर्ववत् // 126 // सोलस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स णाणस्स / जीवपएसियदिट्ठी उसमपुरंमी समुप्पण्णा॥१२७॥(मू.भा.) ** * * ** // 352 // * ** *
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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