________________ आवश्यकनिर्युक्तेरव चर्णिः देशकालकालकाललाप्रमाणका लवर्णकाला नि० गा० 727-731 // 338 // इव, पीडनमिक्ष्वादेरिव, आयुष उपक्रमहेतुत्वादुपक्रमा एते // 726 // उक्त उपक्रमकाला, अधुना देशकालद्वारं, तत्र देशकालः प्रस्ताव उच्यते, स च प्रशस्तोप्रशस्तश्च, तत्र प्रशस्तस्वरूपमाहनिमगं च गामं महिलाथूमं च सुण्णयं दटुं। णीयं च कागा ओलेंति जाया भिक्खस्स हरहरा // 727 // महिलास्तूपं-कूपतटं, तथा 'णीयं च कागा ओलेंति'त्ति [नीचं च काकाः] 'गृहाणि प्रति भ्रमन्ति, तांश्चं दृष्ट्वा विद्यात् यथा जाता भैक्षस्य 'हरहरा'-इति अतीव भिक्षाप्रस्तावः // 727 // अप्रशस्तस्वरूपमाहनिम्मच्छियं महुं पायडो णिही खजगावणो सुण्णो / जायंगणे पसुत्ता पउत्थवइया ये मत्ता य॥७२८ // खाद्यकापण:- कुल्लूरिकापणः शून्यः, अतो मध्वादीनां ग्रहणप्रस्तावः // 728 // अधुना कालकाल उच्यते कालस्यसत्त्वस्य श्वानादेः कालो-मरणं कालकालः, अमुमेवार्थमाहकालेण कओ कालो अम्हं सज्झायदेसकालंमि / तो तेण हओ कालो अकालकालं करेंतेणं // 729 // 'कालेन' शुना 'कृतः कालः' कृतं मरणं, ततोऽनेन हतः कालो भग्नः स्वाध्यायकालः, अकाले-अप्रस्तावे 'कालं' मरणं कुर्वता // 729 // प्रमाणकालो विशिष्टव्यवहारहेत्वहर्निशरूप इत्याहदुविहो पमाणकालो दिवसपमाणं च होइ राई अ। चउपोरिसिओ दिवसो राती चउपोरिसी चेव // 730 // दिवसप्रमाणं च भवति रात्रिश्च, ततश्च प्रमाणमेव कालः प्रमाणकालः // 730 // वर्णकालखरूपमाहपंचण्हं वण्णाणं जो खलु वण्णेण कालओ वण्णो / सो होइ वण्णकालो वणिज्जइ जो व जं कालं // 731 // // 338 //