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________________ आवश्यक नियुक्तेरव दशविधसामाचारी नि० गा. 705-710 चूर्णिः // 333 // // 333 मा 'अक्खाणं' ति समवसरणस्य // 704 // कृतिकर्मद्वारमाहदो चेव मत्तगाइं खेले तह काइआए बीयं तु / जावइया य सुणेती सत्वेऽवि य ते तु वदति // 705 // मात्रक-समाधिः, अर्द्धकृतव्याख्यानोत्थानानुत्थानाभ्यां पलिमन्थात्मविराधनादयश्च दोषा भावनीयाः // 705 // / कायोत्सर्गद्वारमाह सब्वे काउस्सगं करेंति सब्वे पुणोऽवि वंदति / णासण्णे णाइदूरे गुरुवयणपडिच्छगा होति // 706 // सर्वे श्रोतारः कायोत्सर्ग चोत्सार्य सर्वे पुनरपि वन्दते, ततो नासन्ने नातिदूरे व्यवस्थिताः सन्तो गुरुवचनप्रतीच्छ का भवन्ति-शृण्वन्ति // 706 // श्रवणविधिमाह णिद्दाविगहापरिवजिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं / भत्तिबहुमाणपुव्वं उवउत्तेहिं सुणेयव्वं // 707 // अभिकखंतेहिं सुहासियाई वयणाई अत्थसाराई / विम्हियमुहेहिं हरिसागरहिं हरिसं जणंतेहिं // 708 // 'हरिसागएहिं' ति आगतहषैरित्यर्थः, अन्येषां च हर्ष जनयद्भिः, एवं शृण्वद्भिस्तैर्गुरोरतीव परितोषः स्यात् // 708 // ततः किमित्याह गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं / इच्छियसुत्तत्थाणं खिप्पं पारं समुवयंति // 709 // 'गुरुपरितोषगतेन' गुरुपरितोषजातेन सता // 709 // वक्खाणसमत्तीए जोगं काऊण काइआईणं / वंदति तओ जेटु अण्णे पुव्वं चिय भणंति // 710 // // 333 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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