________________ बावश्यकनिर्युक्तेरवचूर्णिः सर्वायुष्कआगमपरिनिर्वाणतपो द्वाराणि नि० गा० 654-659 // 318 // ' छद्मस्थपर्यायमगारवासं च व्यवकलय्य सर्वायुष्कस्य शेषं जिनपर्यायं विजानीहि // 653 // स चायं जिनपर्यायःबारस सोलस अट्ठारसेव अट्ठारसेव अढेव / सोलस सोल तहेकळस चोद्द सोले य सोले य // 654 // सर्वायुष्कमाहबाणउई चउहत्तरि सत्तरि तत्तो भवे असीई य / एगं च सयं तत्तो तेसीई पंचणउई य // 655 // अत्तरिं च वासा तत्तो बावत्तरिं च वासाई / बावट्ठी चत्ता खलु सव्वगणहराउयं एयं // 656 // आगमद्वारमाहसव्वे य माहणा जच्चा, सव्वे अज्झावया विऊ / सब्वे दुवालसंगी य, सवे चोद्दस पुग्विणो॥ 657 // स्वल्पेऽपि द्वादशाङ्गाध्ययने द्वादशाङ्गिन उच्यन्ते एव, अतः सम्पूर्णज्ञापनार्थमाह-सर्वे चतुर्दशपूर्विणः // 657 // परिनिर्वाणद्वारमाहपरिणिव्वुया गणहरा जीवंते णायए णव जणा उ। इंदभई सुहम्मो य रायगिहे निव्वुए वीरे // 658 // तपोद्वारमाहमासं पाओवगया सव्वेऽवि य सव्वलद्धिसंपण्णा। बजरिसहसंघयणा समचउरंसा य संठाणा // 659 // समचतुरस्राश्च संस्थानतः॥ 659 // // 318 //