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________________ 38* आवश्यक नियुक्तेरव चूर्णिः // 266 // वृद्धिजातिस्मरणभेषण द्वाराणि शक्रप्रशंसा च भा. गा. 67-72 जनन्याः समर्प्य जन्ममहिमां च कृतवान् स्वर्गे नन्दीश्वरे च // 66 // खोमं कुंडलजुअलं सिरिदामं चेव देइ सकोसे। मणिकणगरयणवासं उवच्छुभे जंभगा देवा // 67 // (भा०) क्षीमं-देववस्त्रं कुण्डलयुग्म- कर्णाभरणं श्रीदाम-अनेकरत्नखचितं दर्शनसुभगं भवति, तच्च ददाति शक्रः, 'से' तस्य भगवतः, जृम्भका व्यन्तरा देवाः, शेषं सुगमं // 67 // वेसमणवयणसंचोइआ उ ते तिरिअजंभगा देवा / कोडिग्गसो हिरण्णं रयणाणि अ तत्थ उवणिति॥६८॥ वैश्रमणवचनसंचोदितास्तु ते तिर्यग्जम्भका देवाः, तिर्यगिति तिर्यग्लोकजृम्भकाः, कोट्यग्रशः-कोटीपरिमाणतः, हिरण्यमघटितरूपं रत्नानि चेन्द्रनीलादीनि तत्रोपनयन्ति // 68 // अथ वृद्धिद्वारमाहअह वड्डइ सो भयवं दिअलोअचुओ अणोवमसिरीओ। दासीदासपरिवुडो परिकिपणो पीढमद्देहिं ॥६९॥(भा०)। अथ वर्द्धते स भगवान् देवलोकच्युतोऽनुपमश्रीकः दासीदासपरिवृतः, परिकीर्णः पीठमर्दैमहानृपतिभिः परिवृत इत्यर्थः॥ 69 // असिअसिरओ सुनयणो० // 7 // जातिस्मरणद्वारमाह-जाईसरो अ भयवं०॥७१॥ (भा०) व्याख्या पूर्ववत् // 70-71 // भेषणद्वारमाहअह ऊणट्ठवासस्स भगवओ सुरवराण मज्झमि / संतगुणुक्कि (णकि) तणयं करेइ सक्को सुहम्माए // 72 // (भा०) 'अर्थ' अनन्तरं न्यूनाष्टवर्षस्य भगवतः सतः सुरवराणां मध्ये सन्तश्च ते गुणाश्च तेषां कीर्तनं करोति शक्रः सुधर्मायां सभायां व्यवस्थितः // 72 // किम्भूतमित्याह // 266 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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