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________________ आवश्यक- नियुक्तेरव चूर्णिः अभिग्रह द्वारम् भा० गा० 54-60 // 264 // आश्विनबहुलत्रयोदश्यां संहरति, पूर्वरात्रे-आद्ययामद्वयान्ते इत्यर्थः, हस्तोत्तरायां त्रयोदशीदिने // 53 // अनयोर्व्याख्या प्राग्वत्, नवरं पश्यति सा ब्राह्मणी प्रतिनिवृत्तान् यस्यां रजन्यामपहृतः कुक्षीत इति // 54-55 // गयगाहा // 56 // (भाष्यम्)॥ एए चोद्दस सुमिणे पासइ सा तिसलया सुहपसुत्ता। रयणिं साहरिओ कुञ्छिसि महायसो वीरो॥५७॥(भा०) ___ इदं गाथाद्वयं त्रिशलामधिकृत्य पूर्ववद्वाच्यं // 56-57 // गतमपसंहारद्वारं, अथाभिग्रहद्वारमाहतिहि नाणेहि समग्गो देवी तिसलाइ सोअकुच्छिसि।अह वसइसण्णिगम्भो छम्मासे अद्धमासं च // 28 // (भा०) ___'अर्थ' अपसंहारानन्तरं वसति, संज्ञी चासौ गर्भश्च संज्ञिगर्भः, व ?-देव्यास्त्रिशलायाः कुक्षौ, ननु सर्वो गर्भः संश्येव भवतीति विशेषणवैफल्यं, न, दृष्टिवादोपदेशेन विशेषणत्वात् , स च ज्ञानद्वयवानपि भवत्यत आह-त्रिभिर्ज्ञानैः-मतिश्रुतावधिभिः समग्रः, कियत्कालं?-षण्मासानद्धमासं च // 58 // अह सत्तमंमि मासे गब्भत्थो चेवऽभिग्गहं गिण्हे। नाहं समणो होहं अम्मापिअरंमि जीवंते // 59 // (भा०) अथ सप्तमे मासे गर्भादारभ्य मातापित्रोर्जीवतोरिति // 59 // दोण्हं वरमहिलाणं गम्भे वसिऊण गन्भसुकुमालो। नवमासे पडिपुण्णे सत्त य दिवसे समइरेगे // 60 // (भा०) द्वयोर्वरमहिलयोर्गर्भ उषित्वा गर्भसुकुमारः प्रायोऽप्राप्तदुःख इत्यर्थः, कियन्तं कालं ? नवमासान्प्रतिपूर्णान् सप्तदिवसान् सातिरेकान् समधिकानित्यर्थः // जन्मद्वारमाह MO // 264 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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