________________ जिनान्त आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः राणि // 247 // अभिनन्दनतो नवभिः सागरकोटिलक्षः सुमतिः॥४॥ णउई य सहस्सेहिं कोडीणं सागराण पुण्णाणं / सुमइजिणाउ पउमो एवतिकालेण उप्पण्णो॥५॥ सुमतेर्नवत्या सागरकोटिसहस्रः पद्मप्रभः॥५॥ पउमप्पहनामाओ नवहि सहस्सेहि अयरकोडीणं / कालेणेवइएणं सुपासनामो समुप्पण्णो // 6 // पद्मप्रभानव सागरकोटिसहस्रः सुपार्श्वः॥६॥ कोडीसएहि नवहि उ सुपासनामा जिणो समुप्पण्णो / चंदप्पभो पभाए पभासयंतो उ तेलोकं // 7 // - सुपान्निवभिः सागरकोटिशतैश्चन्द्रप्रभः॥७॥ णउईए कोडीहिं ससीउ सुविहीजिणो समुप्पण्णो / सुविहिजिणाओ नवहिउ कोडीहिं सीअलो जाओ॥८॥ चन्द्रप्रभानवत्या सागरकोटीभिः सुविधिः, सुविधेर्नवभिः कोटीभिः शीतलः॥८॥ सीअलजिणाउ भयवं सिज्जंसो सागराण कोडीए / सागरसयऊणाए वरिसेहिं तहा इमेहिं तु // 9 // शीतलात्सागरकोव्या परं शतसागरन्यूनया इयद्भिश्च वरूनया // 9 // छव्वीसाए सहस्सेहिं चेव छावहि सयसहस्सेहिं / एतेहिं ऊणिआ खलु कोडी मग्गिल्लिा होइ // 10 // षषष्ट्या वर्षलक्षः षड्विंशत्या वर्षसहस्रैश्च // 10 // चउपण्णा अयराणं सिज्जंसाओ जिणो उ वसुपुज्जो। वसुपुज्जाओ विमलो तीसहि अयरेहि उप्पण्णो // 11 // // 247 //