________________ सुन्दा आवश्यक- [ नियुक्तेरक- चूर्णिः // 230 // XXXXXXXXXXXXXXXXXXX* मरीचिरिति जातमात्रो मरीचीन मुक्तवानिति मरीचिमान् मरीचिरभेदोपचारान्मतुब्लोपाद्वा, सामान्यकुमारदीक्षाभिधाने सत्यपि मरीचेर्विशेषाभिधानं प्रकृतोपयोगित्वात् , सम्यक्त्वेन लब्धा-प्राप्ता बुद्धिर्यस्य सः॥ 347 // इयं गाथाऽव्याख्याता हारिभद्रीयवृत्ती, 'ओअवि' साधयित्वा // 1 // * मागहमाई विजयो सुंदरिपक्वज बारसभिसेओ। आणवण भाउगाणं समुसरणे पुच्छ दिद्रुतो // 348 // मागंधमादौ यस्य स मागधादिर्विजयो भरतेन कृतः, विजयं कुर्वता च क्षुलहिमवद्देवसाधनानन्तरं ऋषभकूटे हिमवदधोभागवर्तिनि स्वनाम लिखितमनेन गाथाद्वयेन 'ओसप्पिणीइमीसे तइआइ समाइ पच्छिमे भागे। अहयंसि चक्कवट्टी भरहुत्ति अ नामधिजेणं // 1 // अहयंसि पढमराया इहई भरहाहिवो नरवरिंदो / नत्थि ममं पडिसत्तू जिअं मए भारहं वासं // 2 // इति। पुनरागतेन सुन्दरी अवरोधस्थिता दृष्टा, क्षीणत्वात् मुक्ता, प्रव्रज्या दापिता, द्वादश वर्षाण्यभिषेकः कृतो भरताय (तस्य)। आज्ञापनं भ्रातॄणां चकार, तेऽपि समवसरणे भगवन्तं पृष्टवन्तः, भगवता चाङ्गारकदाहकदृष्टान्तो गदितः, वैतालिकाख्यं सूत्रकृताङ्गद्वितीयाध्ययनं प्ररूपितं, तेऽष्टानवतिरपि प्रबजिताः॥ 348 // बाहुबलिकोवकरणं निवेअणं चक्कि देवया कहणं / नाहम्मेणं जुज्झे दिक्खा पडिमा पइण्णा य // 349 // पढमं दिट्ठीजुद्धं वायाजुद्धं तहेव बाहाहिं / मुट्ठीहि अ दंडेहि अ सबथवि जिप्पए भरहो // 32 // (भाष्यम्) | सो एव जिप्पमाणो विहुरो अह नरवई विचिंतेइ / किं मन्नि एस चक्की ? जह दाणी दुब्बलो अहयं // 33 // भा० ताहे चकं मणसी करेइ पत्ते अचकरयणमि / बाहुबलिणा य भणिधिरत्थु रजस्स तो तुज्झ // 1 // (प्र० अ०) अष्टानवतेभ्राणां च दीक्षा भरतबाहुबलि युद्धं च |नि० गा० 348-349 भा० गा. 32-33 // 230 //