________________ आवश्यकनिर्युक्तेरव // 219 // पञ्चनवतिः सहस्राणि, वर्षाणामिति पाश्चात्यमिहापि सम्बध्यते 17, चतुरशीतिवर्षसहस्राणि 18, पञ्चपञ्चाशद्वर्ष- अन्तक्रियासहस्राणि 19, त्रिंशद्वर्षसहस्राणि 20, दश वर्षसहस्राणि 21, एक वर्षसहनं 22, एकं वर्षशतं 23, द्वासप्ततिर्वषोणि 24 द्वारं नि० ID गा० 306NI // 305 // गतं पर्यायद्वारं, अथान्तक्रियाद्वारावसरः, तत्रापि कस्य केन तपसा व वा जाता कियत्परिवृतस्येत्याह 310 निव्वाणमंतकिरिआ, सा चउदसमेण पढमनाहस्स / सेसाण मासिएणं, वीरजिणिंदस्स छटेणं // 306 // निर्वाणलक्षणा अन्तक्रिया सा ऋषभस्य पद्धिरुपवासैरभूत् शेषाणां द्वाविंशतेर्मासिकेन-मासोपवासेन, वीरजिनेन्द्रस्य षष्ठेन // 306 // अट्ठावयचंपुजिंतपावासम्मेअसेलसिहरेसुं। उसम वसुपुज्ज नेमी, वीरो सेसा य सिद्धिगया // 307 // अष्टापदे ऋषभः सिद्धिमगमत् , चम्पायां वासुपूज्यः, उज्जयन्ते नेमिः, पापायां नगर्या वीरः, शेषाः विंशतिः सम्मेतशिखरे // 307 // एगो भयवं वीरो, तित्तीसाइ सह निव्वुओ पासो / छत्तीसएहिं पंचहि, सएहि नेमी उ सिद्धिगओ // 308 // एकाकी निवृतो वीरः, त्रयस्त्रिंशता साधुभिः सह पार्श्वः, षट्त्रिंशदधिकैः पञ्चभिः शतैर्नेमिः॥ 308 // पंचएहि समणसएहिं, मल्ली संती उ नवसएहिं तु / अट्ठसएणं धम्मो, सएहि छहि वासुपुज्वजिणो // 309 // // 219 // पञ्चभिः श्रमणशतैर्मल्लि', शान्तिनवभिः शतैः, अष्टोत्तरशतेन (अष्टभिः शतैः) धर्मः, षड्भिः शतैर्वासुपूज्यः // 309 // सत्तसहस्साणंतइजिणस्स विमलस्स छस्सहस्साई। पंचसयाइ सुपासे, पउमामे तिणि अट्ठ सया // 310 //