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________________ सम्बोधन आवश्यकनियुक्तेरव द्वारं चूर्णिः ईशान दिशा नि० गा० 214 // 199 // 215 उत्तरदिशा इदं गाथाद्वयं समासव्याख्यारूपं, न च समासेनोक्तं मन्दमतयोऽवबुध्यन्ते, ततः प्रपञ्चेन विवरीषुराद्यद्वारमाहपूर्वदिशा सारस्सयमाइचा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिआ अव्वाबाहा, अग्गिचा चेव रिट्ठा य // 214 // | कृष्णराजी सारस्वताः 1 मकारोऽलाक्षणिकः, आदित्याः 2 वह्नयः 3 वरुणाः 4 20 अर्षिमाली-आदित्य मेघराजी गईतोयाः 5, चः समुच्चये, तुषिताः 6, अव्याबाधाः 7 अग्नयश्चैव संज्ञा-वैरोचन-चहि न्तरतो मरुतोऽप्यभिधीयन्ते 8, रिष्ठाश्चेति 'तात्स्थ्यात्तव्यपदेश' इति न्यायात् रिष्ठविमानवासिनो देवा अपि रिष्ठाः 9, ब्रह्मलोकस्थरिष्ठप्रस्तटा९. रिहाम-रिक्ष धाराष्टकृष्णराजिमध्यस्थविमाननवकनिवासिन इत्यर्थः॥२१४॥ स्थापना७०शुकाम-अव्यावाच एए देवनिकाया भयवं, बोहिंति जिणवरिंदं तु / प्रतिक्षोभा वातप्रतिक्षोभ सव्वजगज्जीवहिअं, भयवं ! तित्थं पवत्तेहिं // 215 // 6.0 सूर्याभन्तुषित ___ एते देवनिकायाः सारस्वतादयः, भगवन्तं बोधयन्ति जिनवरेन्द्रं तु, वातपरिष सर्वे च ते जगज्जीवाश्च सर्वजगज्जीवाः तेभ्यो हितं भगवन् ! तीर्थ पश्रिमदिशा प्रवर्त्तयस्व // 215 // परित्यागद्वारमाहआठ कृष्णराजीना नाम-कृष्णराजी 2 मेघराजी 3 मघा 4 माघवती 5 वातपरिघ 6 वातप्रतिक्षोभ 7 देवपरिघ 8 देवप्रतिक्षोभ, नव लोकान्तिकदेवोना विमानोना नाम-१ अर्चि 2 अर्चिमाली 3 वैरोचन 4 प्रभंकर 5 चंद्राभ 6 सूर्याभ 7 शुक्राम 8 सुप्रतिष्ठाभ 9 रिष्टाभ, नव लोकान्तिकदेवोना नाम-१ सारस्वत २मादित्य 3 वद्वि वरुण 5 गर्दतोय 6 तुषित 7 अब्यावाध 8 आग्नेय ९रिष्ट / देवप्रतिक्षोभ देवपरिष 8.0 अप्रतिहाभ-आमेय 10 मर्चि-सारखत प्रभंकर-वरुण मना दक्षिणदिशा १०चंद्राम-गर्दतोष मायवती + // 199 //
SR No.600447
Book TitleAvashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherDevchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size37 MB
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