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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1160 // 16 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 564 जीवस्याकरणत्वं शरीरादीनांच | सूत्रम् 565 जीवस्याकरणत्वं शरीरादीनांच तदुभयाहि वि, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव तदुभयाहि वि?, गोयमा! अविरतिं पडुच्च, से तेणतुणं जाव तदुभयाहि वि, एवं जाव वेमाणिए॥९जीवाणं भंते! अधिकरणे किं आयप्पओगनि० परप्पयोगनि० तदुभयप्पयोगनि०?, गोयमा! आयप्पयोगनि०वि परप्पयोगनि वि तदुभयप्पयोगनि वि,सेकेण० भंते! एवं वु०?, गोयमा! अविरतिंप०,से तेणटेणंजाव तदुभयप्पयोगनिवि, एवं जाव वेमाणियाणं॥ सूत्रम् 564 // 10 कइणंभंते! सरीरगा प०?, गोयमा! पंच सरीरा पण्णत्ता, तंजहा-ओरालिए जाव कम्मए / 11 कति णं भंते! इंदिया प०?, गोयमा! पंच इंदिया प०, तंजहा-सोइंदिए जाव फासिंदिए, 12 कतिविहे गंभंते! जोए प०?, गोयमा! तिविहे जोए प०, तंजहामणजोए वइजोए कायजोए॥१३ जीवेणंभंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी अधिकरणं?, गोयमा! अधिकरणीवि अधिकरणंपि, 14 से केण० भंते! एवं वु० अधिकरणीवि अधिकरणंपि?, गोयमा! अविरतिं पडुच्च, से तेणटेणंजाव अधिकरणंपि, 14 पुढविकाइए णं भंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी अधिकरणं?, एवं चेव, एवं जाव माणुस्से / एवं वेउब्वियसरीरंपि, नवरंजस्स अत्थि। 15 जीवेणंभंते! आहारगसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी?, पुच्छा, गोयमा! अधिकरणीवि अधिकरणंपि, सेकेण जाव अधिकरणंपि?, गोयमा! पमायं प०, से तेणटेणंजाव अधिकरणंपि, एवं मणुस्सेवि, तेयासरीरंजहा ओरालियं, नवरंसव्वजीवाणंभाणियव्वं, एवं कम्मगसरीरंपि।१६ जीवेणंभंते! सोइंदियं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी अधिकरणं?, एवं जहेव ओरालियसरीरं तहेव सोइंदियंपि भाणियव्वं, नवरं जस्स अत्थि सोइंदियं, एवं चक्खिंदियघाणिंदियजिभिंदियफासिंदियाणवि, नवरं जाणियव्वं जस्स जं अत्थि। 17 जीवेणं भंते! मणजोगं निव्वत्तमाणे किं अधिकरणी अधिकरणं, एवं जहेव सोइंदियं तहेव निरवसेसं, वइजोगो एवं चेव, नवरं एगिदियवजणं, एवं कायजोगोवि, नवरं सव्वजीवाणंजाव वेमाणिए / सेवं भंते!
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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