________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1591 // 33 शतके अवान्तर शतक: 12 सूत्रम् 844-849 एकेन्द्रियभेदादिः एएणं अभि० जहेव ओहिएगिदियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्हलेस्ससतेवि भाणियव्वा जाव अचरिमचरिमकण्हलेस्साएगिं०॥सूत्रम् 848 // बितियं एगिदियसयंसम्मत्तं // 2 // 1 जहा कण्हलेस्सेहिं भणियं एवं नीललेस्सेहिवि सयं भाणियव्वं / सेवं भंते! रत्ति // ततियं एगिदियसयं सम्मत्तं // 3 // एवं काउलेस्सेहिवि सयं भा० नवरं काउलेस्सेति अभिलावो भाणियव्वो॥चउत्थं एगिदियसयं सम्मत्तं ॥४॥१कइविहा णं भंते! भवसिद्धीया एगिं० प०?, गोयमा! पंचविहा भवसिद्धीया एगिं० प०, तं० पु०काइया जाव वणकाइया भेदो चउक्कओ जाव वणकाइयत्ति / 2 भवसिद्धियअपज्जत्तसुहुमपु०काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओप०?, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिदियसयंतहेव भवसिद्धियसयंपि भा०, उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमोत्ति / सेवं भंते! रत्ति ॥पंचमं एगिदियसयं सम्मत्तं // ५॥१क० णं भंते! कण्हलेस्सा भवसि० एगिं० प०?, गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसि० एगि० प०, पु०काइया जाव वणकाइया, 2 कण्हलेस्सभवसिद्धीयपु०काइया णं भंते! क०प०?, गोयमा! दुविहा प०, तं० सुहुमपु०काइया य बायरपु०काइया य, 3 कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपु०काइया णं भंते! क० प०?, गोयमा! दुविहा पं० तंजहा- पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, एवं बायरावि, एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओभेदो भा०, 4 कण्हलेस्सभवसि अपज्जत्तसुहमपु०काइयाणंभंते! कइ कम्मप्पगडीओ प०, एवं एएणं अभि० जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव वेदेति ।५क० णं भंते! अणंतरोव० कण्हलेस्साभवसि० एगि०प०?, गोयमा! पंचविहा अणंतरोव० जाव वणकाइया, 6 अणंतरोव०कण्हलेस्सभवसि०पु०काइयाणं भंते! क०प०?, गोयमा! दुविहा प०, तं० सुहमपुढविका एवं दुयओ भेदो। 7 अणंतरोव०कण्हलेस्सभवसि सुहुमपु०काइयाणं भंते! कइ कम्मप०प०?, एवं एएणं अभि० जहेव ओहिओ अणंतरोववन्नउद्देसओ तहेव जाव वेदेति , एवं एएणं अभि० एक्कारसवि उद्देसगा तहेव भा० जहा ओहियसए जाव | // 1591 //