________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1590 // 33 शतके अवान्तर शतक: 12 सूत्रम् 844-848 एकेन्द्रियभेदादिः ओहिउद्देसए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव चउद्दस वेदेति / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 846 // 33-3 // 22 अणंतरोगाढा जहा अणंतरोववन्नगा 4 // 23 परंपरोगाढा जहा परंपरोव०५॥२४ अणंतराहारगा जहा अणंतरोव०६॥२५ परंपराहारगा जहा परंपरोव०७॥२६ अणंतरपज्जत्तगा जहा अणंतरोव०८॥२७ परंपरपज्जत्तगा जहा परंपरोव०९॥२८चरिमावि जहा परंपरोव० तहेव 10 // 29 एवं अचरिमावि 11 // एवं एए एक्कारसउद्देसगा।सेवं भंते! 2 जाव विहरइ॥ सूत्रम् 847 // पढमं एगिदियसयं सम्मत्तं // 1 // 1 कइविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया प०?, गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया प०, तं० पु०काइया जाव वणस्सइकाइया।२ कण्हलेस्सा णं भंते! पु०काइया कइविहा प०?, गोयमा! दुविहा पं० तं० सुहुमपु०काइया य बादरपु०काइया य, 3 कण्हलेस्सा णं भंते! सुहुमपु०काइया कइविहा प०?, गोयमा! एवं एएणं अभिलावेणं चउक्तभेदो जहेव ओहिउद्देसए जाव वणस्सइकाइयत्ति, 4 कण्हलेस्सअपज्जत्तसु०पु०काइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ प०?, एवं चेव एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ तहेव बंधंति तहेव वेदेति / सेवं भंते ! रत्ति॥५कइविहाणं भंते! अणंतरोव०कण्हलेस्सएगि०प०?, गोयमा! पंचविहा अणंतरोव० कण्हलेस्सा एगिं० एवं एएणं अभिलावेणं तहेव दुयओ भेदो जाव वणकाइयत्ति, 6 अणंतरोववन्नगकण्हलेस्ससु०पु०काइयाणं भंते! कइ कम्मप्प०प०?, एवं एएणं अभि० जहा ओहिओ अणंतरोववन्नगाणं उद्देसओ तहेव जाव वेदेति।सेवं भंते! रत्ति // 7 कइविहाणं भंते! परंपरोव० कण्हलेस्सा एगि०प०?,गोयमा! पंचविहा परंपरोव० कण्ह० एगि०प०, तंजहा-पु०काइया एवं एएणं अभि० तहेव चउक्कओ भेदो जाव वणकाइयत्ति, 8 परंपरोव०कण्हलेस्सअपज्जत्तसु०पु०काइयाणं भंते! कइ कम्ममप्प० प०?, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ परंपरोव उद्देसओ तहेव जाव वेदेति, एवं // 1590 //