________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1579 // 30 शतके उद्देशकः 2-11 सूत्रम् 826-828 अनन्तरोत्पनादीनांसम अकिरियावाई त्यादि, शेषं तु प्रतीतार्थत्वान्न व्याख्यातमिति // 29 // // 825 // त्रिंशत्तमशते प्रथमः॥३०-१॥ ॥त्रिंशत्तमशतके द्वितीयादारभ्य एकादशान्तोद्देशकाः॥ १अणंतरोववन्नगाणं भंते! नेरइया किं किरियावादी? पुच्छा, गोयमा! किरियावादीवि जाव वेणइयवादीवि, 2 सलेस्सा णं भंते! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावादी एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इहवि भा०, नवरं जंजस्स अत्थि अणंतरोववन्नगाणं ने तंतस्स भाणियव्वं, एवं सव्वजीवाणंजाववेमाणियाणं, नवरं अणंतरोववनगाणंजंजहिं अत्थितं तहिं भा०।३ किरियावाई णं भंते! अणंतरोव० नेरइया किं नेरइयाउयं प०? पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति नो तिरि० नो मणु० नो देवाउयं प०, एवं अकिरि०वि अन्ना०वि वेण०वि। ४सलेस्सा णं भंते! किरियावादी अणंतरोववन्नगा ने० किं नेरइयाउयं पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउयं प० जाव नो देवाउयंप० एवं जाव वेमा०, एवं सव्वट्ठाणेसुवि अणंतरोववन्नगा ने न किंचिवि आउयं प० जाव अणागारोवउत्तत्ति, एवंजाव वेमा० नवरंजंजस्स अत्थितंतस्स भाणियव्वं / 5 किरियावादीणंभंते! अणंतरोववन्नगा ने० किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया?, गोयमा! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया।६ अकिरियावादी णं पुच्छा, गोयमा! भवसिवि अभवसिवि, एवं अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि। 7 सलेस्सा णं भंते! किरियावादी अणंतरोववन्नगा ने० किं भवसि० अभवसि०?, गोयमा! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया भणिया तहेव इहवि भा० जाव अणागारोवउत्तत्ति एवं जाव वेमाणियाणं नवरं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं, इमं से लक्खणं-जे किरियावादी सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठीया एएसव्वे भवसि० नो अभवसि०, सेसा सव्वे भवसिद्धीयावि अभवसिद्धीयावि। सेवं भंते! इति ॥सूत्रम् 826 // 30-2 // 8 // 1579 //