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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1560 // 26 शतके उद्देशकः 4-12 सूत्रम् 817 बन्ध्यादि णं भंते! मणुस्से पावं कम्मं किंबंधी? पुच्छा, गोयमा! अत्थे० बंधी बंधइ बंधिस्सइ अत्थे० बंधी बंधइन बंधिस्सइ अत्थे० बंधीन बंधड़ बंधिस्सइ / 3 सलेस्से णं भंते! अचरिमे मणूसे पावं कम्मं किं बंधी?, एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भा० एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं जेसु तत्थ वीससुचत्तारि भंगा तेसुइह आदिल्ला तिन्निभंगा भा० चरिमभंगवजा, अलेस्से केवलनाणी य अजोगीय एए तिन्निविन पुच्छिजंति, सेसं तहेव, वाणमंतरजोइ० वेमा० जहा नेरइए। 4 अचरिमे णं भंते! ने० नाणावरणिज्नं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा! एवं जहेव पावं नवरंमणुस्सेसुसकसाईसुलोभकसाईसुयपढमबितिया भंगा सेसा अट्ठारस चरमविहूणा सेसंतहेव जाववेमाणियाणं, दरिसणावरणिज्जंपिएवं चेव निरवसेसं, वेयणिजे सव्वत्थविपढमबितिया भंगाजाव वेमाणियाणं नवरंमणुस्सेसु अलेस्से केवली अजोगीय नत्थि।५ अचरिमेणं भंते! ने० मोहणिज्जं कम्मं किं बंधी? पुच्छा, गोयमा! जहेव पावंतहेव निरवसेसं जाव वेमाणिए॥६अचरिमेणं भंते! ने० आउयं कम्मं किं बंधी? पुच्छा, गोयमा! पढमबितिया भंगा, एवं सव्वपदेसुवि, नेरइयाणं पढमततिया भंगा नवरंसम्मामिच्छत्ते ततिओभंगो, एवंजाव थणियकुमाराणं, पुढविक्काइयआउक्काइयवणस्सइकाइयाणं तेउलेस्साए ततिओभंगो सेसेसुपदेसु सव्वत्थ पढमततिया भंगा, तेउकाइयवाउक्काइयाणं सव्वत्थ पढमततिया भंगा, बेइंदियतेइंदियचउ० एवं चेव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणेआभिणिबोहियनाणे सुयनाणे एएसु चउसुवि ठाणेसु ततिओ भंगो, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, सेसेसु पदेसु सव्वत्थ पढमततिया भंगा, मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मि य ततिओ भंगो, अलेस्स केवलनाण अजोगी य न पुच्छिजंति, सेसपदेसु सव्वत्थ पढमततिया भंगा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेर० / नामं गोयं अंतराइयं च जहेव नानावरणिज्जं तहेव निरवसेसं / सेवं भंते! 2 जाव विहरइ // सूत्रम् 817 // 26-11 उद्देसो॥ बंधिसयंसम्मत्तं // 26 // // 1560 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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