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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-३ // 1554 // 26 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 814 जीवानामाय:कर्मबन्धि च क्षपक उपशमको वा तयोश्च वर्त्तमानबन्धो नास्त्यायुष उपशमकश्च प्रतिपतितो भन्त्स्यति क्षपकस्तु नैवं भन्त्स्यतीतिकृत्वा तयोस्तृतीयचतुर्थी, सेसेसु त्ति शेषपदेषु- उक्तव्यतिरिक्तेषु अज्ञान १मत्यज्ञानादि 3 सज्ञोपयुक्ताहारादिसज्ञोपयुक्त 4 सवेद स्त्रीवेदादि 3 सकषाय १क्रोधादिकषाय 4 सयोगि१मनोयोग्यादि 2 साकारोपयुक्तानाकारोपयुक्तलक्षणेषु चत्वार एवेति॥ 23 // 24 नेरइएणं भंते! आउयं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए चत्तारि भंगा एवं सव्वत्थवि नेरइयाणं चत्तारि भंगा नवरं कण्हलेस्से कण्हपक्खिए य पढमततिया भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततियचउत्था, असुरकुमारे एवं चेव, नवरं कण्हलेस्सेवि चत्तारि भंगा भाणियव्वा सेसंजहा नेरइयाणं एवंजाव थणियकुमाराणं, पुढविक्काइयाणसव्वत्थवि चत्तारि भंगा, नवरंकण्हपक्खिए पढमततिया भंगा, 25 तेऊलेस्से पुच्छा, गोयमा! बंधी न बंधइ बंधिस्सइ सेसेसु सव्वत्थ चत्तारि भंगा, एवं आउक्काइयवणस्सइकाइयाणवि निरवसेसं, तेउकाइयवाउक्काइयाणं सव्वत्थवि पढमत० भंगा, बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणंपिसव्वत्थविपढमत० भंगा, नवरंसम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ततिओ भंगो। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढमत० भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततियचउत्थो भंगो, सम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे एएसुपंचसुवि पदेसु बितियविहूणा भंगा, सेसेसुचत्तारि भंगा, मणुस्साणं जहा जीवाणं, नवरं सम्मत्ते ओहिए नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे एएसु बितियविहूणा भंगा, सेसंतंचेव, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा, नामंगोयं अंतरायंच एयाणि जहानाणावरणिज्जं / सेवं भंते! रत्ति जाव विहरति ।सूत्रम् 814 // बंधिसयस्स पढमो उद्देसओ॥२६-१॥ नारकदण्डके चत्तारि भंग त्ति, तत्र नारक आयुर्बद्धवान् बध्नाति बन्धकाले भन्त्स्यति भवान्तर इत्येकः 1, प्राप्तव्यसिद्धिकस्य | // 1554 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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