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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1544 // 25 शतके उद्देशक: 8-9-10 11-12 सूत्रम् 805-809 नारकभव्यादीनामुत्पत्तिरीतिः कहं गती पवत्तइ?, गोयमा! आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं, एवं खलु तेसिं जीवाणंगती पवत्तति, 5 ते णं भंते! जीवा किं आयडीए उववजंति परिड्डीए उव०?, गोयमा! आइडीए उव० नो परिडीए उव०।६ तेणं भंते! जीवा किं आयकम्मुणा उव० परकम्मुणा उव०?, गोयमा! आयकम्मुणा उव० नो परकम्मुणा उव०!, 7 ते णं भंते! जीवा किं आयप्पयोगेणं उव० परप्पयोगेणं उव०?, गोयमा! आयप्पयोगेणं उव० नो परप्पयोगेणं उव०।८ असुरकुमारा णं भंते! कहं उव०?, जहा नेरतिया तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उव० एवं एगिदियवजा जाव वेमाणिया, एगिदिया तंचेव नवरंचउसमइओ विग्गहो, सेसंतंचेव, सेवं भंते! रत्ति जाव विहरइ / / सूत्रम् ८०५॥पंचवीसइमस्स अट्ठमो॥२५-८॥ १भवसिद्धियनेरइया णं भंते! कहं उव०?, गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अवसेसंतंचेव एवं जाव वेमाणिए, सेवं भंते! रति // सूत्रम् 806 // 25-9 // १अभवसिद्धियनेरइया णं भंते! कहं उव०?, गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अवसेसंतं चेव एवं जाव वेमाणिए, सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 807 / / 25-10 // १सम्मदिविनेरइयाणंभंते ! कहं उव०?, गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अवसेसंतं चेव एवं एगिदियवजंजाव वेमाणिया, सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 808 // 25 -11 // १मिच्छदिट्ठिनेरइयाणं भंते! कहं उव०?, गोयमा! से जहानामए- पवए पवमाणे अवसेसंतंचेव एवं जाव वेमाणिए, सेवं भंते रत्ति ॥सूत्रम् 809 // 25 -12 // पंचवीसतिमंसयंसम्मत्तं // 25 // रायगिहे इत्यादि पवए त्ति प्लवकः- उत्प्लवनकारी पवमाणे त्ति प्लवमानः- उत्प्लुतिं कुर्वन् अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं ति // 1544 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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