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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1526 // 25 शतके उद्देशक: सूत्रम् 798 सामायिकादीनां कालान्तरादि जहा नियंठे, अहक्खाए जहा सा०संजए।७९सासंजया णं भंते! कालओ केवच्चिर होइ?, गोयमा! सव्वद्धा, 80 छेदोवट्ठावणिएसु पुच्छा, गोयमा! ज० अड्डाइजाई वाससयाई, उ० पन्नासं सागरोवमकोडिसयसहस्साई,८१ परिहारविसुद्धिए पुच्छा, गोयमा! ज० देसूणाई दो वाससयाई, उ० देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ, 82 सुहुमसंपरागसंजया णं भंते! पुच्छा, गोयमा! ज० एवं समयं, उ० अंतो०, अहक्खायसंजया जहा सामाइयसंजया 29 / / 83 सा०संजयस्स २णं भंते! केवतियं कालं अंतर होइ?, गोयमा! ज० जहा पुलागस्स एवं जाव अहसंजयस्स, 84 सामाइयसं० भंते! पुच्छा, गोयमा! नत्थि अंतरं, 85 छेदोवट्ठावणिय पुच्छा, गोयमा! ज० तेवढ़िवाससहस्साई, उ० अट्ठारस सागरोवमकोडाकाडीओ, ८६परिहारविसुद्धियस्स पुच्छा, गोयमा! ज० चउरासीईवाससहस्साई, उ० अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, सुहुमसंपरायाणं जहा नियंठाणं, अहक्खायाणं जहा सा०संजयाणं 30 // 87 सासंजयस्स णं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता?, गोयमा! छ समुग्घाया प०, तं जहा कसायकुसीलस्स, एवं छेदोवट्ठावणियस्सवि, परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स, सुहुमसंपरागस्स जहा नियंठस्स, अहक्खायस्स जहा सिणायस्स 31 // 88 सा संजएणं भंते! लोगस्स किं संखेजइभागे होजा असंखेजड़भागे पुच्छा, गोयमा! नो संखेजइ जहा पुलाए, एवं जाव सुहुमसंपराए। अ०संजए जहा सिणाए 32 // 89 सा०संजएणं भंते! लोगस्स किं संखेजइभागंफुसइ जहेव होजा तहेव फुसइ 33 // 90 सा०संजएणं भंते! कयरंमि भावे होजा?, गोयमा! उवसमिए भावे होजा, एवं जाव सुहमसंपराए, 91 अहक्खायसंपराए पुच्छा, गोयमा! उवसमिए वा खइए वा भावे होजा 34 // 92 सा.संजयाणं भंते! एगसमएणं केवतिया होजा?, गोयमा! पडिवजमाणए य पडुच जहा कसायकुसीला तहेव निरवसेसं, 93 छेदोवट्ठावणिया पुच्छा, गोयमा! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अत्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि ज० एक्को वा दोवा तिन्नि वा, उ० सयपुहुत्तं, पुव्वपडिवन्नए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि ज० कोडिसयपुहत्तं, उ०वि कोडिसयपुहुत्तं, // 1526 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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