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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1523 // 25 शतके उद्देशकः७ सूत्रम् | 794-796 सामायिकादीनां परिणामः बन्धादिः सासंज० परिहारवि० सुहमसं असंज० संजमासंजमं वा उव०, 64 परिहारविसुद्धिए पुच्छा, गोयमा! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति छेदोवट्ठा संजयं वा असंजमंवा उपसंपज्जति, 65 सुहुमसंपराए पुच्छा, गोयमा! सुहुमसंपरायसंजयत्तं जहति सा०संजयंवा छेओवट्ठा संजयं वा अहसंजयंवा असंजमंवा उवसं०, 66 अहसंजएणं पुच्छा, गोयमा! अहसंजयत्तं जहति सुहुमसंपरागसंजयं वा असंजमंवा सिद्धिगतिं वा उवसंपज्जति २४॥सूत्रम् 795 // 67 सामाइयसंजएणंभंते! किंसन्नोवउत्ते हो० नोसन्नोवउत्ते होजा?,गोयमा! सन्नोवउत्तेजहा बउसो, एवं जाव परिहारविसुद्धिए, सुहुमसंपराए अहक्खाए य जहा पुलाए 25 // 68 सामाइयसंजए णं भंते! किं आहारए होज्जा अणाहारए होज्जा जहा पुलाए, एवं जाव सुहुमसंपराए, अहक्खायसंजए जहा सिणाए 26 // 69 सामाइयसंजए णं भंते! कति भवग्गहणाइं होज्जा?, गोयमा! जह० एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठ, एवं छेदोवट्ठावणिएवि, 70 परिहारविसुद्धिए पुच्छा, गोयमा! जह० एक्कं समयं उक्कोसेणं तिन्नि, एवं जाव अहक्खाए २७॥सूत्रम् 796 // सुहुमसंपराए इत्यादौ आउयमोहणिज्जवजाओ छ कम्मपगडीओ बंधइत्ति सूक्ष्मसम्परायसंयतो ह्यायुर्न बध्नाति अप्रमत्तान्तत्वात्तद्वन्धस्य, मोहनीयं च बादरकषायोदयाभावान्न बध्नातिति तद्वर्जाः षट् कर्मप्रकृतीर्बध्नातीति // 56 // वेदद्वारे अहक्खाये त्यादौ सत्तविहवेयए वा चउव्विहवेयए वत्ति यथाख्यातसंयतो निर्ग्रन्थावस्थायां मोहवज्ज त्ति मोहवर्जानां सप्तानां कर्मप्रकृतीनां वेदको मोहनीयस्योपशान्तत्वात् क्षीणत्वाद्वा, स्नातकावस्थायां तु चतसृणामेव, घातिकर्मप्रकृतीनां तस्य क्षीणत्वात् / / 57 / / // 794 // उपसम्पद्धानद्वारे सामाइयसंजए ण मित्यादि,सामायिकसंयतःसामायिकसंयतत्वं त्यजति छेदोपस्थापनीयसंयतत्वं प्रतिपद्यते, // 1523 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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