________________ १५शतके सूत्रम् 550 श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभयः वृत्तियुतम् भाग-३ // 1122 // गोशालकशते परावृत्त पहिारः आवतीगंगा, सत्त आवतीगंगाओसा एगा परमावती, कएवामेव सपुव्वावरेणंएगंगंगासयसहस्सं सत्तर सहस्सा छच्चगुणपन्नगंगासया भवंतीति मक्खाया, तासिं दुविहे उद्धारे पण्णत्ते, तंजहा-सुहुमबोंदिकलेवरे चेव बायरबोंदिकलेवरेचेव, तत्थ णंजे से सुहुमबों से ठप्पे तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओणं वाससए 2 गए 2 एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोढे खीणे णीरेए निल्लेवे निट्ठिए भवति सेत्तं सरे सरप्पमाणे, एएणं सरप्पमाणेणं तिन्नि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे, चउरासीइ महाकप्पसयसहस्साई से एगे महामाणसे, अणंताओ संजूहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजति, से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ रत्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति, सेणं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उव०, से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई जाव विहरित्ता ताओ देवलोयाओ आउ० 3 जाव चइत्ता दोच्चे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति, सेणंतओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता हेडिल्ले माणसे संजूहे देवे उव०, से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता तच्चे सन्निगब्भे जीवे पच्चा०, से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववजिहिति, सेणं तत्थ दिव्वाई भोग जाव चइत्ता चउत्थे सन्निगन्भे जीवे पच्चा०, सेणं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उव०, सेणं तत्थ दिव्वाइंभोग जाव चइत्ता पंचमे सन्निगन्भे जीवे पच्चा०, से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता हिट्ठिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उव०, से णं तत्थ दिव्वाइं भोग जाव चइत्ता छट्टे सन्निगब्भे जीवे पच्चा०, से णं तओहिंतो अणंतरं उववट्टित्ता बंभलोगे नाम से कप्पे पन्नत्ते पाईणपडीणायते उदीणदाहिणविच्छिन्ने जहा ठाणपदे जावपंच वडेंसगा पं०, तंजहा- असोगवडेंसए जाव पडिरूवा, से णं तत्थ देवे उव०, से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्वाई भोग जाव चइत्ता सत्तमे सन्निगब्भे जीवे पच्चा०, सेणं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण जाव वीतिक्वंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउकुंडल // 1122 //