________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1513 // 25 शतके उद्देशकः 7 सूत्रम् 786 सामायिकादिस्वरूपं ॥पञ्चविंशशतके सप्तमोद्देशकः॥ षष्ठोद्देशके संयतानां स्वरूपमुक्तम्, सप्तमेऽपि तदेवोच्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रं कइ णं भंते! इत्यादि, इहापि प्रज्ञापनादीनि द्वाराणि वाच्यानि, तत्र प्रज्ञापनाद्वारमधिकृत्योक्तं - १कति णं भंते! संजया पन्नत्ता?, गोयमा! पंच संजया पं०, तं० सामाइयसंजए छेदोवट्ठावणियसंजए परिहारविसुद्धियसंजए सुहमसंपरायसंजए अहक्खायसंजए, २सामाइयसंजएणंभंते! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-इत्तरिए य आवकहिए य, 3 छेओवट्ठावणियसंजएणंपुच्छा, गोयमा! दुविहे प०, तं० सातियारे य निरतियारे य, 4 परिहारविसुद्धियसंजए पुच्छा, गोयमा! दुविहे पं०, तं०५ णिव्विसमाणए य निविट्ठकाइए य, सुहुमसंपरागपुच्छा, गोयमा! दुविहे पं०, तं० संकिलिस्समाणएय विसुद्धमाणए य, 6 अहक्खायसंजए पुच्छा, गोयमा! दुविहे पं०, तं० छउमत्थे य केवली य / सामाइयंमि उ कए चाउज्जामं अणुत्तरं धम्मं / तिविहेणं फासयंतोसामाइयसंजओस खलु॥१॥छेत्तूण उ परियागं पोराणंजो ठवेइ अप्पाणं। धम्मंमिपंचजामे छेदोवट्ठावणोस खलु ॥२॥परिहरइ जो विसुद्धं तुपंचयामं अणुत्तरं धम्मं / तिविहेणं फासयंतो परिहारियसंजओसखलु ॥३॥लोभाणु वेययंतो जो खलु उवसामओ व खवओ वा / सो सुहुमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि // 4 // उवसंते खीणमि व जरो खलु कम्मंमि मोहणिज्जंमि। छउमत्थो व जिणो वा अहखाओ संजओस खलु // 5 // सूत्रम् 786 // कतिणंभंते! इत्यादि, सामाइयसंजए त्ति सामायिकं नाम चारित्रविशेषस्तत्प्रधानस्तेन वासंयतःसामायिकसंयतः, एवमन्येऽपि // 1 // इत्तरिए यत्ति इत्वरस्य भाविव्यपदेशान्तरत्वेनाल्पकालिकस्य सामायिकस्यास्तित्वादित्वरिकः,सचारोपयिष्यमाणमहाव्रतःप्रथमपश्चिमतीर्थकरसाधुः, आवकहिए यत्तियावत्कथिकस्य-भाविव्यपदेशान्तराभावाद्यावजीविकस्यसामायिक // 1513 //