________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1510 // 25 शतके उद्देशकः 6 सूत्रम् 781-784 पुलाकादेःसमुद्धातक्षेत्रावगाहभावाः 148 बउसस्सणं भंते! पुच्छा, गोयमा! पंच समुग्घाया प०, तं० वेयणासमुग्घाए जाव तेयास०, एवं पडिसेवणाकुसीलेवि, 149 कसायकुसीलस्स पुच्छा, गोयमा! छ समुग्घाया प०, तं० वेयणास० जाव आहारस०, 150 नियंठस्स णं पुच्छा, गोयमा! नत्थि एकोवि, 151 सिणायस्स पुच्छा, गोयमा! एगे केवलिसमुग्घाए प०३१॥ सूत्रम् 781 // 152 पुलाए णं भंते! लोगस्स किं संखेजइभागे होज्जा 1 असंखेज्जइभागे होज्जा 2 संखेजेसु भागेसु होज्जा 3 असंखेजेसु भागेसु होज्जा 4 सव्वलोए होज्जा 5?, गोयमा! णो संखेजइभागे होज्जा असंखेज्जइभागे होजा णो संखेजेसु भागेसु होज्जा णो असंखेन्जेसु भागेसु होजाणोसव्वलोए होजा, एवंजाव नियंठे। 153 सिणाएणंपुच्छा, गोयमा! णो संखेज्जइभागे होज्जा असंखेजइभागे होज्जा णो संखेजेसु भागेसु होज्जा असंखेजेसुभागेसु होजा सव्वलोए वा होज्जा 32 // सूत्रम् 782 // 154 पुलाए णं भंते! लोगस्स किं संखेजइभागं फुसइ असंखेज्जइभागं फुसइ?, एवं जहा ओगाहणा भणिया तहा फुसणावि भाणियव्वा जाव सिणाए 33 // सूत्रम् 783 // 155 पुलाए णं भंते! कतरंमि भावे होजा?, गो०! खओवसमिए भावे होज्जा, एवं जाव कसायकुसीले। 156 नियंठे पुच्छा, गोयमा! उवसमिए वा भावे होज्जा खइए वा भावे होजा। 157 सिणाए पुच्छा, गो०! खाइए भावे होज्जा 34 // सूत्रम् 784 // कसायसमुग्घाए त्ति चारित्रवतां संज्वलनकषायोदयसम्भवेन कषायसमुद्धातो भवतीति, मारणंतियसमुग्घाए त्ति, इह पुलाकस्य मरणाभावेऽपि मारणान्तिकसमुद्धातो न विरुद्धः समुद्धातान्निवृत्तस्य कषायकुशीलत्वादिपरिणामे सति मरणभावात् // 147 // नियंठस्स नत्थि एक्कोवि त्ति तथास्वभावत्वादिति / / 150 // // 781 // 0 पुलाकत्वादिनिबन्धनानां चारित्रमोहक्षयोपशमादीनामेव विवक्षणात् नात्रौदयिकपारिणामिकाद्यनुक्तौ क्षतिः। // 1510 //