________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1506 // 25 शतके उद्देशक: 6 सूत्रम् 777-778 पुलाकादेर्भवाकर्षों पुलाकनिर्ग्रन्थस्नातकाः नोसज्ञोपयुक्ताः, ज्ञानप्रधानोपयोगवन्तो न पुनराहारादिसज्ञोपयुक्ताः, बकुशादयस्तूभयथाऽपि, तथाविधसंयमस्थानसद्भावादिति // 121 // // 775 // आहारकद्वारे आहारए होज्ज त्ति पुलाकादेर्निर्ग्रन्थान्तस्य विग्रहगत्यादीनामनाहारकत्वकारणानामभावादाहारकत्वमेव / / 123 / / सिणाए इत्यादि, स्नातकः केवलिसमुद्धाते तृतीयचतुर्थपञ्चमसमयेषु अयोग्यवस्थायांचानाहारकः स्यात्, ततोऽन्यत्र पुनहारक इति // 124 // // 776 // भवद्वारे 125 पुलाए णं भंते! कति भवगहणाई होजा?, गोयमा! जहन्नेणं एवं उक्कोसेणं तिन्नि / 126 बउसे पुच्छा, गोयमा! जह० एवं उक्कोसेणं अट्ठ, एवं पडिसेवणाकुसीलेवि, एवं कसायकुसीलेवि, नियंठे जहा पुलाए। 127 सिणाए पुच्छा, गोयमा! एवं 27 // सूत्रम् 777 // 128 पुलागस्सणं भंते! एगभवग्गहणीया केवतिया आगरिसा प०?, गोयमा! ज० एक्को, उ० तिन्नि / 129 बउसस्सणं पुच्छा, गोयमा! ज० एक्को, उ० सतग्गसो, एवं पडि कुसीलेवि, कल्कुसीलेवि।१३० णियंठस्स णं पुच्छा, गोयमा! ज० एक्को, उ० दोन्नि / 131 सिणायस्सणं पुच्छा, गोयमा! एक्को // 132 पुलागस्सणं भंते! नाणाभवग्गहणिया के० आगरिसा प०?, गोयमा! ज० दोन्नि, उ० सत्त / 133 बउसस्स पुच्छा, गोयमा! ज० दोन्नि, उ० सहस्सग्गसो, एवं जाव कसायकुसीलस्स। 134 नियंठस्स णं पुच्छा, गोयमा! ज० दोन्नि, उ० पंच / 135 सिणायस्स पुच्छा, गोयमा! नत्थि एक्कोवि २८॥सूत्रम् 778 // / पुलाए ण मित्यादि, पुलाको जघन्यत एकस्मिन् भवग्रहणे भूत्वा कषायकुशीलत्वादिकं संयतत्वान्तरमेकशोऽनेकशो वा तत्रैव भवे भवान्तरे वाऽवाप्य सिद्ध्यति, उत्कृष्टतस्तु देवादिभवान्तरितान् त्रीन् भवान् पुलाकत्वमवाप्नोति // 125 // 'बउसे' // 1506 //