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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ | // 1502 // ज्ञानोत्पत्तौ परिणामान्तरभावात्, अवस्थितपरिणामः पुनर्निर्ग्रन्थस्य जघन्यत एकं समयं मरणात्स्यादिति // 97 / / सिणाए णं 25 शतके भंते! इत्यादि, स्नातको जघन्येतराभ्यामन्तर्मुहूर्तं वर्द्धमानपरिणामः, शैलेश्यां तस्यास्तत्प्रमाणत्वात्, अवस्थित उद्देशक:६ सूत्रम् परिणामकालोऽपि जघन्यतस्तस्यान्तर्मुहर्त्तम्, कथं?, उच्यते, यः स केवलज्ञानोत्पादानन्तरमन्तर्मुहूर्त्तमवस्थितपरिणामो 771-773 भूत्वा शैलेशी प्रतिपद्यते तदपेक्षयेति, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी त्ति पूर्वकोट्यायुषः पुरुषस्य जन्मतो जघन्येन नवसु पुलाकादे बन्धवेदोवर्षेष्वतिगतेषु केवलज्ञानमुत्पद्यते ततोऽसौ तदूनां पूर्वकोटीमवस्थितपरिणामः शैलेशी यावद्विहरति, शैलेश्यां चल दीरणाः वर्द्धमानपरिणामः स्यादित्येवं देशोनामिति // 100-101 // // 770 // बन्धद्वारे 102 पुलाए णं भंते! कति कम्मपगडीओ बंधति?, गोयमा! आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति।१०३ बउसे पुच्छा, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा, सत्त बंधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति, अट्ठ बंधमाणे पडिपुन्नाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ बंधइ, एवं पडिसेवणाकुसीलेवि, 104 कसायकुसीले पुच्छा, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा, सत्त बंधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बं०, अट्ठ बंधमाणे पडिपुन्नाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ बं०, छ बंधमाणे आउयमोहणिज्जवनाओ छक्कम्मप्पगडीओ बं०।१०५ नियंठे णं पुच्छा, गोयमा! एगं वेयणिज्नं कम्मं बं०।१०६ सिणाए पुच्छा, गोयमा! एगविहबंधए वा अबंधए वा, एगंबंधमाणे एगं वेयणिज्नं कम्मंबंधइ २१॥सूत्रम् 771 // 107 पुलाए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेइ?, गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेइ, एवं जाव कसायकुसीले, 108 नियंठेणंपुच्छा, गोयमा! मोहणिज्जवजाओसत्त कम्मप्पगडीओ वेदेइ / 109 सिणाएणंपुच्छा, गोयमा! वेयणिज्जआउयनामगोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेइ 22 ॥सूत्रम् 772 // // 1502 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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